अन्यथा बेजान हैं
इस महामारी में
हजारों लोग
काल का ग्रास बन गए,
कई परिवारों के
कमाऊ लोग
चल बसे, विलीन हो गए,
झकझोर दिया है
आर्थिक स्थिति को,
बेरोजगार कर दिया है
हजारों लाखों युवाओं को,
सपने चकनाचूर
कर दिए हैं
मानवता के,
रोटी की जरूरत
पहली जरुरत है, इंसान की,
इसलिए आज की विकट परिस्थिति में,
रोटी बटोरने की नहीं
रोटी बांटने की जरुरत है,
असहाय की मदद को
खड़ा होने की जरुरत है,
तभी हम इंसान हैं,
अन्यथा पत्थर हैं
बेजान हैं,
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डॉ. सतीश पांडेय
सुन्दर
सादर धन्यवाद पण्डित जी
शानदार लिखा है सर
धन्यवाद सर
Nice Poem
आदरणीया यादव जी को सादर धन्यवाद
अच्छी है 🙏
विद्वान व्यक्तित्व द्वारा की गई सराहना अपनी पूँजी होती है, सराहना हेतु आभार व धन्यवाद
अरे सर ! ये तो आपका बड़प्पन है, अभी से कहां विद्वान !
अभी तो बहुत कुछ सीखना बाकी है।🙏🙏
भावपूर्ण रचना
धन्यवाद गीता जी, आपकी कविताएं भी बहुत स्तरीय हैं, आभार
धन्यवाद🙏
अन्यथा बेजान हैं
वाह कितना जबरदस्त लिखा है वाह
धन्यवाद जी
nice
सादर धन्यवाद जी
Waah Bahut Khoob
thanks
वाह जी कमाल
Thanks
सुन्दर अभिव्यक्ति
सादर धन्यवाद
Waah
🙏💐
tatsam tadbhav Shabd ka prayog
Thanks