वृद्धाश्रम

पेट में आया था जिस दिन तू
फूले नहीं समाई थी मैं,
बार -बार छूं उदर त्वचा को
मन ही मन मुस्काई थी मैं।
नौ महीने तक पल पल तेरा
ख्याल सजाया था मन ही मन।
कितनी उत्साहित थी तब मैं
तू क्या जाने ममता का मन।
जन्म लिया था जिस दिन तूने
महादर्द में भी खुश थी मैं।
भूल गयी थी सारी पीड़ा
हासिल कर बैठी सब कुछ थी मैं।
धीरे-धीरे बड़ा हुआ तू
दूध अमृत रस तुझे पिलाया,
अपना आधा पेट रही मैं
खुद से पहले तुझे खिलाया।
पढ़ा- लिखा लिखाकर आंखें खोली
अपना फर्ज निभाया मैंने,
आज बड़ा होकर अपने मैं
मस्त राह अपनाई तूने।
तू अपने पत्नी -बच्चों के
साथ हवेली में खुश रहना
मुझे छोड़ इस वृद्ध आश्रम
जा बेटा , खुद में खुश रहना।
— डॉ0 सतीश पाण्डेय

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Responses

  1. कुछ बच्चे मां बाप के साथ ऐसा भी करते हैं….ये बहुत दुखद है।
    फिर भी मां बाप के दिल से दुआएं ही निकलती हैं ।
    बहुत ही मार्मिक एवं हृदय स्पर्शी चित्रण

  2. मातु पिता में ईश्वर होते
    कहता भारत का ये ज्ञान।
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    गुरुकुल की राह भुलाए जब से।
    ग्रैजुएट मूर्ख कहलाए तब से।।
    ऐसा मूर्ख भला क्या जाने
    अपना भी वो दिन आएगा।
    जिसके खातिर सब को छोड़ा
    आखिर उसी से दुत्कारा जाएगा।।

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