मौत की नींद
बेजान नजरे जा टिकी थी
उसके चेहरे पर
जब जिस्म से जान ये
जुदा हो गई
तड़प रहे थे हम
मरने के बाद भी
यह मासूम आंखें
किस कदर रो गई
दिल तो किया
फिर जी उठूँ और पौंछ दू
उन आंखों को
जीवन का एक घोर दरख्त
मैं सहेजू प्रेम की सॉखों को
पर लौट के वापस आ ना सके
मौत की इस दुनिया में
इस कदर खो गए
फिर चाह कर भी जागना सके
मौत की नींद हम जब सो गए
अपनों के बिछङने का दर्द ही कुछ ऐसा है, लब्ज़ मिलते नहीं अश्क चेहरे को भिगोता है ।
Thankyou 🙏🙏
बहुत खूब,
धन्यवाद आपका
मृत्यु के बाद का सजीव और संजीदा वर्णन।
सुंदर प्रस्तुतीकरण
Thankyou 🤗
वाह काफी खूबसूरत
Thankyou 🙏
मार्मिक
🙏🙏
Beautiful poem dear
thank you so much🤗