पूर्णिमा
पूर्णिमा जब चांदनी
धरती पर आकर पसारती है
लगे चांदी के आभूषण से
धरती का रूप सवारती है
मां के पास आंगन में सोए
नन्हे शिशु पर छांव करें
उसे हरी समझ कर पूज गईं
पड़ी किरण शिशु के पांव तले
जब शीत पवन के झोंके से
उन द्खतौ ने अंगड़ाई ली
मां कहे कि पवन सताती है
फिर चादर से परछाई की
यह देख चांदनी रूठ गई
मां ने चादर की ओट करी
जब कई घड़ी बालक ना दिखा
वह फिर बादल में लौट गई
पूर्णिमा की छटा ही ऐसी होती है,बुझते हुए मन में आशाओं की बीज बोती है
सुन्दर अभिव्यक्ति
धन्यवाद आपका
बहुत सुन्दर
थैंक्स 🙏🙏
वाह वाह, अतिसुन्दर रचना,
धन्यवाद आपका 🙏🙏🙏
अति सुंदर
लाजवाब
Thankyou
सुन्दर अभिव्यक्ति
Thankyou 🙏🙏🙏
अच्छी अभिव्यक्ति की है अपने अन्तर्मन की
Keep it up
🙏🙏