उचित सम्मान दूं
खूबसूरती को तुम्हारी,
क्या नया उपमान दूँ,
उपमान तो कितने ही
बेहतर दूं ,भले न दे सकूँ
लेकिन इतना तो कर सकूं कि
घर के बाहर व भीतर
तुम्हें उचित सम्मान दूं।
खूबसूरती को तुम्हारी,
क्या नया उपमान दूँ,
उपमान तो कितने ही
बेहतर दूं ,भले न दे सकूँ
लेकिन इतना तो कर सकूं कि
घर के बाहर व भीतर
तुम्हें उचित सम्मान दूं।
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बहुत खूब
बहुत बहुत धन्यवाद
वाह सर, जीवन साथी की सराहना के नए उपमान और घर और बाहर उचित सम्मान देना आपकी लेखनी की अनूठी विशेषता का ही परिचायक है । लेखनी को प्रणाम है सतीश जी..
आपके द्वारा की गई समीक्षा अति उत्साहवर्धक है, गीता जी, आपकी इस लेखनी को अभिवादन। बहुत सुंदर समीक्षा करती हैं आप।
🙏🙏
वास्तव में बहुत बेहतरीन लिखती हैं गीता मैम
कविता तो लाजवाब है ही, लेकिन बात आपकी काबिलेतारीफ समीक्षा की है, जो हर किसी की कविता में फिट बैठती है।
Thank you very much Chandra mam..
बहुत खूब कविता
सादर धन्यवाद जी
उच्च कोटि।
सादर धन्यवाद
वाह वाह क्या कहने
सादर धन्यवाद शास्त्री जी
Nice poem
Thank you ji