उचित सम्मान दूं

खूबसूरती को तुम्हारी,
क्या नया उपमान दूँ,
उपमान तो कितने ही
बेहतर दूं ,भले न दे सकूँ
लेकिन इतना तो कर सकूं कि
घर के बाहर व भीतर
तुम्हें उचित सम्मान दूं।

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Responses

  1. वाह सर, जीवन साथी की सराहना के नए उपमान और घर और बाहर उचित सम्मान देना आपकी लेखनी की अनूठी विशेषता का ही परिचायक है । लेखनी को प्रणाम है सतीश जी..

    1. आपके द्वारा की गई समीक्षा अति उत्साहवर्धक है, गीता जी, आपकी इस लेखनी को अभिवादन। बहुत सुंदर समीक्षा करती हैं आप।

      1. कविता तो लाजवाब है ही, लेकिन बात आपकी काबिलेतारीफ समीक्षा की है, जो हर किसी की कविता में फिट बैठती है।

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