बलात्कार:- एक अभिशाप
जीवन के पहले प्रभात में
ली मैंने अंगड़ाई
बाल्यकाल था बीता किशोरावस्था
की बेला आई..
रोंक-टोंक थी ज्यादा मुझ पर
समझ नहीं मैं पाती थी
बचपन से मैं ट्यूशन पढ़ने
चाचा जी के घर जाती थी..
एक दिन ऐसा हुआ कि मैं
पहुँच गई चाचा से पढ़ने
चाची जी कहीं गई थीं बाहर
केवल चाचा ही थे घर में…
वैसे रोज़ डाटते थे उस दिन
प्यार से मुझको पास बुलाया
पानी में कुछ मिला-जुला के
कोल्डड्रिंक बोल के मुझे पिलाया…
उनकी हरकतें कुछ ठीक ना थीं
मैं घर जाने को आतुर हो आई
हाथ पकड़कर मेरा चाचा ने
फिर एक चपाट लगाई…
भूखे भेंड़िये सम वह मेरे
अंग-अंग को नोच रहे थे
मैं वो कोमल-सी कली थी
जिसको पैरों से वह रौंद रहे थे…
चाचा मैं तो तेरी बेटी हूँ
यह हाथ जोड़ मैं बोल रही थी
कृष्ण सुदर्शन धर आएगे
मन ही मन में सोंच रही थी…
बूंद-बूंद रस पीकर उसने
तन को मेरे जीर्ण किया
मेरे मृत शरीर को उसने
सौ टुकड़े कर बोरी में किया…
फेंक दिया नदिया में जाकर
घरवालों को फिर फोन मिलाकर
आज ना आई ट्यूशन पढ़ने
थाने में आया ये रपट लिखाकर…
दो महीने के बाद मिला
मेरा शव बोरी में भरा हुआ
मेरा फोन उसी बोरी में था
जिससे सारा पर्दाफाश हुआ…
वह भाग गया था, पकड़ा गया
कानून ने भी इन्साफ किया
मेरी सखी ने जब उस पापी
का पुलिस को असली पता दिया..
जबरदस्त अभिव्यक्ति। मार्मिक अभिव्यक्ति। व्यवस्था को आईना दिखाती हुई जबरदस्त रचना
थैंक्यू भाई…
यह घटना मेरी फ्रेंड के साथ हुई जो आज दुनिया में नहीं है
मैं हर माँ-बाप की आँखें खोलना चाहती हूँ जो आँख मूदकर सब पर भरोसा कर लेते हैं…
यथार्थ चित्रण मैम।
बहुत सारे माँ बाप जानकर भी अनजान बन इस कुकृत्य को
अनजाने में बढ़ावा देते हैं ।
आपने जिस तरह से इसे व्यक्त किया, उसके लिए मेरे पास अलफाज नहीं है ।
बात यह है कि यह घटना मेरी फ्रेंड के साथ हुई जो दुनिया में नहीं है..
इस कविता का एक एक शब्द कल्पना नहीं सत्य है
बहुत ही मार्मिक चित्रण
धन्यवाद
बहुत ही मार्मिक घटना की बहुत सलीके से अभिव्यक्ति की है प्रज्ञा ।
पिता तुल्य चाचा पर विश्वास किया, और उस विश्वास की कैसे धज्जियां उड़ी ।ये सच में एक चौकन्ना करने वाली रचना है। समाज को एक सीख देती हुई काबिले तारीफ़ प्रस्तुति ।
बात यह है कि यह घटना मेरी फ्रेंड के साथ हुई जो दुनिया में नहीं है..
इस कविता का एक एक शब्द कल्पना नहीं सत्य है
धन्यवाद दीदी…
बहुत ही मार्मिक
बहुत ही मार्मिक
धन्यवाद
यथार्थपरक एवं मार्मिक रचना
समाज में लगभग 80% महिला उत्पीडन एवं बलात्कार की घटनाएं परिवार के सदस्यों ,संगे सम्बन्धित लोगों द्वारा होती है।
सच्चाई को प्रस्तुत करती बहुत ही बेहतरीन अभिव्यक्ति
सही कह रही हो..तथाकथित चाचा रोज पुलिस के साथ ढूढने जाते थे लड़की को जबकि खुद नदी में फेंक आये थे जब पता चला कि शक मुझ पर है तब भाग गये…