राक्षस
कथाओं में जिन राक्षसों का
जिक्र होता है, वे कोई
राक्षस जाति नहीं थी
बल्कि ये वे दरिन्दे ही थे
जो आज भी अक्सर
सरे राह बदतमीजी करते हैं
छेड़ाखानी करते हैं,
नारियों पर कुदृष्टि रखते हैं,
बेटियों से जबरदस्ती करते हैं,
अपहरण करते हैं,
कुकृत्य करते हैं,
हवस की खातिर मार देते हैं,
वे राक्षस हैं दरिन्दे हैं जो
मानवता को शर्मसार करते हैं,
इनको पहचानना होगा
इनसे सावधान रहना होगा
सतर्क होकर इनसे
मानवता को बचाना होगा।
बहुत खूब, बहुत जबरदस्त कविता
बहुत धन्यवाद
बहुत सुंदर विचार
सादर धन्यवाद
बहुत सटीक अभिव्यक्ति है सतीश जी ।कविता के माध्यम से आपने जो बात कही है, अक्सर मै भी ऐसा ही सोचा करती हूं। कथाओं के राक्षसों का ही कदाचित पुनर्जन्म हुआ है,इन्हे पहचानना होगा और इनके किए की सज़ा भी दिलवानी होगी ।अपने घृणित कृत्य के लिए ये राक्षस किसी की पूरी ज़िन्दगी कैसे छीन सकते हैं ।शानदार सोच और शानदार प्रस्तुति
सैल्यूट सर 🙋 ।
इस काबिलेतारीफ समीक्षा हेतु आपको बहुत बहुत धन्यवाद। वास्तव में राक्षस ही आज दरिंदों के रूप में उभरते हैं, वे समाज के लिए खतरा हैं। कविता की इतनी सुंदर व्याख्या हेतु सादर आभार , समीक्षा में सक्षम लेखनी की प्रखरता को अभिवादन
🙏🙏
अतिसुंदर
सादर धन्यवाद शास्त्री जी
Very nice lines, true
बहुत धन्यवाद
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति
सादर धन्यवाद
एक एक शब्द सत्य है
आभार
Nice very nice
सादर धन्यवाद