पर्वतीय सौन्दर्य
सिक्किम के सौन्दर्य का,
मैं कैसे करूं बखान
वहां से लेकर हम यादें,
आए अद्भुत, आलीशान
स्वर्णिम सूर्य उदित होते हैं,
पर्वतों के पार
बनते बादलों की छटा है,
सुन्दर अपरम्पार
झरने झर-झर बहें यहां पर,
शीतल पवन का शोर
सुन्दर हरियाली बिछी हुई है,
यहां पे चारों ओर
कंचन जंगा की बर्फीली चोटी,
के दर्शन यहां हो जाते हैं
बादल खेलें आंख-मिचौली,
बरस कभी भी जाते हैं
पर्वतों से कुछ प्यार सा है,
पर्वत सदा ही भाते हैं
जब करता है दिल कभी,
पर्वतों से मिलने चले जाते हैं ..
*****✍️गीता
प्रकृति का सुंदर व मनोहर चित्रण
कलम ने आज जादू कर दिया आपकी…
कया बात । हौसला अफजाई के लिए आपका। शुक्रिया मैम बहुत सुंदर टिप्पणी मिली है ।खुश कर दिया ।
गीता जी के गीत
ले सबके दिल जीत
बहुत बहुत धन्यवाद एवम् आभार आपका राजीव जी🙏
अति सुंदर वर्णन
प्रिय गीत
Thank you
बहुत ही सुंदर। कवि गीता जी ने इस कविता में प्राकृतिक सौंदर्य का बहुत ही सुंदर, चित्रण किया है।
झरने झर-झर बहें यहां पर,
शीतल पवन का शोर
बहुत ही सुंदर अलंकारिक पंक्तियाँ काव्य में चार चाँद लगा रही हैं।
अद्भुत चित्रण वाह
इतनी सुन्दर समीक्षा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद सतीश जी 🙏
जो देखा था उसी का वर्णन किया है । सचमुच अद्भुत दृश्य ही था वो ।
बहुत बहुत बढ़िया
बहुत बहुत धन्यवाद सर 🙏
अतिसुंदर
बहुत बहुत धन्यवाद आपका भाई जी 🙏