श्री राम जी के नाम एक पाती
विजयादशमी का यह पावन पर्व
वर्षों से समाज को सच्चाई का सबक सिखाऐ
पर आज यह एक प्रश्न उठाये
आज प्रतयंजा कौन चढ़ाऐ
कौन बाण आज छुड़ाए
इस युग में कोई काबिल नहीं
जो रावण का संहार करे
आज कोई राम नहीं
हर और रावण ही रावण छाऐ
दशानन कहलाता ज्ञानी अभिमानी
डंके की चोट पर युद्ध को ललकारे
आज मानव छद्म वेश धार
अपनों के पीठ पीछे वार करे
आज मंथरा घर-घर छाई है
विभीषण ने ही दुनिया में धूम मचाई है
अब राम कैसे आए
कोई शबरी ना बेर खिलाए
केवट बिन दक्षिणा ना नदिया पार कराऐ
कौन भ्राता प्रेम में राज सिंहासन का त्याग करे
हनुमान जैसा सेवक कहाँ से आऐ
अब राम कैसे आए
हाय, अब रावण का कौन संहार करे
तो क्या रावण ही रावण को मार गिराऐ
मानव कब तक कागद पुतला बना मन बहलाऐगा
कब तक समाज नारी की अग्नि-परीक्षा लेता जाएगा
प्रश्न के उत्तर देने प्रभु आपको आना होगा
इस युग के मानव को मर्यादा का पाठ पढ़ाना होगा
नारी को अग्नि-परीक्षा से मुक्त कराना ही होगा
नर को नारी शक्ति और समर्पण का एहसास कराना होगा
अचल अटल विश्वास हमें, तुम आओगे
मानव के सुप्त आदर्शों को नई राह दिखाओगे
फिर विजयादशमी के सन्देश को मन-द्वार पहुचाओगे
सुदृढ़ विश्वास हमें, तुम आओगे, तुम आओगे।
पर आज यह एक प्रश्न उठाये
आज प्रतयंजा कौन चढ़ाऐ….सुन्दर भाव
शुक्रिया जी
अतिसुन्दर रचना अनु जी, बहुत खूब
धन्यवाद जी
बहुत खूब
धन्यवाद
बहुत सुंदर रचना है अनु जी
शुक्रिया जी
बहुत खूबसूरत रचना
शुक्रिया