Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
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करो परिश्रम ——
करो परिश्रम कठिनाई से, जब तक पास तुम्हारे तन है । लहरों से तुम हार मत मानो, ये बात सीखो त जब मँक्षियारा नाव चलाता,…
अर्थ जगत का सार नही, प्रेम जगत का सार है ।
अर्थ जगत का सार नही, प्रेम जगत का सार है । प्रेम से ही टिकी हुई, धरती, गगन, भुवन है ।। अर्थ जगत का सार…
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मां तूं दुनिया मेरी
हरदम शिकायत तूं मुझे माना करती कहां निमकी-खोरमा छिपा के रखती कहां भाई से ही स्नेह मन में तेरे यहां रह के भी तूं रहती…
वाह वाह गीता जी, बहुत स्तरीय कविता है, कर्म ही जीवन है, कर्म के पथ पर अग्रसर राही जरूर मंजिल प्राप्त करते हैं। सादर अभिवादन
इस सुन्दर और उत्साह वर्धक समीक्षा हेतु आपका बहुत बहुत धन्यवाद सतीश जी
सादर अभिवादन सर 🙏
बहुत खूब
शुक्रिया जी
बहुत अच्छा है👌
धन्यवाद ऋषि