*हुनर*
मुकद्दर में ज़्यादा हम मानते नहीं हैं
हाथों की लकीरों को पहचानते नहीं हैं
भरोसा है हमें अपनी ही लगन पर
बस उसे ही अपना ख़ुदा मानते हैं
कभी कहीं हो जाए हमसे चूक कोई
ख़ुद ही से ख़ुद के जवाब मांगते हैं
और ख़्वाब देखते हैं सुहाने अपने मन से
किसी से कुछ भी कहां मांगते हैं
पत्थर को तोड़ कर कंकर बना दे
हम ऐसा भी हुनर जानते हैं
_______✍️गीता
बहुत खूब
सादर धन्यवाद भाई जी🙏
बहुत सुन्दर रचना
बहुत-बहुत धन्यवाद पीयूष जी
ख़्वाब देखते हैं सुहाने अपने मन से
किसी से कुछ भी कहां मांगते हैं
पत्थर को तोड़ कर कंकर बना दे
हम ऐसा भी हुनर जानते हैं।
—— बहुत सुन्दर रचना, आपकी काव्य प्रतिभा अद्भुत है। भाव और शिल्प का बेहतरीन तालमेल है।
प्रेरणा देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद सतीश जी, सुंदर समीक्षा हेतु बहुत-बहुत आभार सर
बहुत खूब तथा सर्वश्रेष्ठ आलोचक व सदस्य बनने पर बधाई हो
Thank you very much pragya.