रिक्तता
निकाल कर फेंक दिया है मैने
अपने भीतर से
हर अनुराग, हर संताप…
अब न ही कोई अपेक्षा है बाक़ी
औऱ न ही कोई पश्चाताप..!!
मैं मुक्त कर चुकी हूँ स्वप्न पखेरुओं
को आँखो की कैद से…
वो उड़ चुके हैं अपने साथ लेकर मेरे
हृदय के सारे विषादों को..
अब मेरे अंतस में है एक अर्थपूर्ण
मौन और रिक्तता..
रिक्तता जो स्वयं में है परिपूर्ण
जो पूरित है सुखद वर्तमान से…!!
वर्तमान,जो स्वतंत्र है विगत की परछाइयों से
जो भयमुक्त है भविष्य की आशंकाओं से
जो आच्छादित है असीम संतोष से…!!
संतोष,जिसके मूल में है एक स्वीकारोत्ति
“मेरी हर तलाश का अंत मुझमें निहित है।”
©अनु उर्मिल’अनुवाद’
वाह क्या बात है
धन्यवाद सर 🙏
उत्तम
वाह, बहुत ख़ूब
बहुत ही सुन्दर
Jay ram jee ki