तू मानव है कुछ सोच रहा।
तू निर्मल है तू निर्भय है , क्या बैठ यहाँ तू सोच रहा।
विधि में तेरे लिखा क्या है, तू मानव है कुछ सोच रहा।।
ये जीवन है जीते हैं सब, कुछ लोग यहाँ रोते रोते
इसमे भाग्य का दोष नही, ये मानव है सोते सोते
सब अपनी करनी भोग रहे, तू इनको क्या अब देख रहा
विधि में तेरे लिखा क्या है, तू मानव है कुछ सोच रहा।।
नम आंखों को तू पोछ जरा , जीवन का अब सम्मान तू कर
उठ कर अपने पैरों पर तु, इस दुनिया पर एहसान तू कर।
तेरे साहस के आगे बढ़कर, कौन तुझे अब रोक रहा
विधि में तेरे लिखा क्या है, तू मानव है कुछ सोच रहा।।
तेरे साहस के आगे बढ़कर, कौन तुझे अब रोक रहा
विधि में तेरे लिखा क्या है, तू मानव है कुछ सोच रहा।।
—- अतीव सुन्दर पंक्तियां। बहुत सुंदर कविता। वाह लेखनी से बहुत सुंदर साहित्य उदभूत हुआ है।
धन्यवाद पांडेय जी
Nice thought awesome poetry
Thanks
भाग्य से आगे कर्म प्रधान को श्रेष्ठ बताती हुई बहुत सुंदर कविता
Thanks