भस्म करूँ खामियाँ स्वयं की
पावक उग आ तू मेरे मन में,
भस्म करूँ खामियाँ स्वयं की,
एक- एक कर खोज -खोज कर
दुर्बलताएँ दूर करूँ निज।
बहुत हो चुका डगमग डगमग
अस्थिर मन अस्थिर तन लेकर
भटक रहा जो इधर-उधर अब
सारी उलझन दूर करूँ निज।
नहीं किसी से गलत कहूँ मैं
नहीं किसी की गलत सुनूँ मैं,
खुलकर राह चुनूँ मैं अपनी
बाधाएं सब दूर करूँ निज।
अपनी बातें, अपनी राहें
अपनी खुशियाँ, अपनी आहें
अपना प्यार, मुहब्बत अपनी
दूजे को भी नेह करूँ नित।
वाह अति सुन्दर रचना
Very nice, wow
पावक उग आ तू मेरे मन में,
भस्म करूँ खामियाँ स्वयं की,
________ स्वयं की खामियां दूर करने की कोशिश की अति सुंदर कविता का कवि सतीश जी की लेखनी से सृजन हुआ है ,अति उत्तम भाव और उम्दा लेखन
पावक उग आ तू मेरे मन में,
भस्म करूँ खामियाँ स्वयं की,
एक- एक कर खोज -खोज कर
दुर्बलताएँ दूर करूँ निज।
बहुत हो चुका डगमग डगमग
अस्थिर मन अस्थिर तन लेकर..
स्वयं की गलतियों को स्वीकार कर दूर करती हुई पंक्तियां