किन्नर होना अभिशाप है !!
किन्नर होना अभिशाप है !!
यह जाना जन्म पाकर
जहां भी जाऊं माहौल
बन जाता है हास्यास्पद
मैं तो गौरी शंकर का रूप हूं
हां मैं अर्धनारीश्वर हूं
क्यों नहीं समझते
दुनिया वाले मुझको अपने जैसा
हां तन से हूं विचित्र
पर मन से बिल्कुल वैसा
मेरी दुआएं हर किसी के काम आतीं हैं
लोगों की व्यंगात्मक निगाहें
मेरे मन को छोल जाती हैं
मेरी दुआओं की तरह
मुझे भी अपना लो
प्रेम ना करो तो
थोड़ी मानवता ही अपना लो।।
किन्नर होना अभिशाप है !!
यह जाना जन्म पाकर
जहां भी जाऊं माहौल
बन जाता है हास्यास्पद
मैं तो गौरी शंकर का रूप हूं
हां मैं अर्धनारीश्वर हूं।।
वाह बहुत खूब मानवता से भरे हैं आप की पंक्तियां हर मनुष्य सामान है वह चाहे मानसिक रूप या शारीरिक रूप से हम से विभिन्न क्यों ना हो हमें हर किसी का आदर करना चाहिए किसी का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए यही सिखाती हुई आपकी रचना सच ही तो है हमारे समाज में ऐसे कुछ लोग हैं जो दूसरों का मजाक उड़ाने का कोई मौका नहीं छोड़ते ऐसे लोगों की सोच पर शर्म आनी चाहिए।।
धन्यवाद आपका
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति