पावन प्रकृति
जहां हवाएं पल-पल बनाएं एक नई तस्वीर
उसी आकाश में लिखना चाहूं मैं अपनी तकदीर
नन्ही बूंदे नई किरण संग बना रही रंगोली
मैं भी सुख के मोती ले लूं फैलाकर अपनी झोली
अपने हृदय में संजो के रख लू ऐसी मीठी यादें
जहां द्वेष ना कोई जलन हो सबकी प्यारी बातें
पल-पल की शांति को तोड़े कुछ ना छोड़े बाकी
बहती उस शैतान पवन की देखूं मैं गुस्ताखी
जहां घाटिया नाप रही हो अंधकार की सीमा
वही निझरनी प्रेम से बहती ना लांगे थी गरिमा
कुछ पल में भी सुनना चाहूं पंछियों की दो बातें
प्रकृति गोद में देखू सुख की पल-पल की बरसाते
जहां पे कोयल सुना रही हो एक प्यारा सा गीत
जहां पे जा एक साथ जुड़ रही धरा और नव की प्रीत
बहुत सुंदर रचना है
धन्यवाद आपका गीता जी
वाह वाह क्या बात है!!!!!!
धन्यवाद आपका पंडित जी🙏
प्राकृतिक छटा के साथ खेलने की चाह रख रहे मन की सहज अभिव्यक्ति हुई है। शब्द युग्म ‘पल-पल’ का प्रयोग सुंदरता बढ़ा रहा है।
सुख के मोती ले लूं फैलाकर अपनी झोली
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
🙏🙏आपका बहुत बहुत आभार 🙏🙏
प्रकृति के प्रति प्रेम भावना की बेहतरीन प्रस्तुति
Thankyou 🙏
Very nice poem
🙏🙏Thankyou 🙏🙏
Nice
Thankyou 🙏
सुन्दर अभिव्यक्ति
Thankyou
प्रकृति का सुंदर प्रयोग करती हुई रचना बहुत ही सुंदर कला पक्ष
Thankyou 🙏
वेलकम