Chalo der hi sahi
चलो देर से ही सही उसे समझ तो आया था
आधी रात को खामोशी में
खुले आसमान के निचे, चाँद सितारों की मौजूदगी में
मेरे यार ने मुझे गले तो लगाया था।
याद है मुझे सर्दियों की वो रात थी
शिकायतें उसकी मुझसे,
शिकायतें मेरी उससे बेहिसाब थी।
तकल्लुफ थी नज़रो में और कपकपाहट थी लफ्ज़ो में
एक कशिश सी थी उन फिजाओ में।
क़यामत सी थी वो रात
क्यूंकि जज़्बातो के सैलाब में उफान आया था
फिर भी बेइन्तेहाँ खुश था दिल मेरा
क्यूंकि आधी रात को ख़ामोशी में
खुले आसमान के निचे, चाँद सितारों की मौजूदगी में
मेरे यार ने मुझे गले तो लगाया था।
भूल गए थे शिकवे सारे
सारी बुरी यादो को लाशो की तरह हमनें उस रात दफनाया था
बन कर काफिर नफरत के उस दिन
हमनें प्यार का परचम फेहराया था।
बैचैन सी रातें कब चैन ओ करार में तब्दील हुयी पता ही ना चला था
उस कोहरे की चादर कब हवा बन गयी पता ही न चला था
फूल की मुर्झाहट कब खुशबू बन गयी पता ही ना चला था
नासमझिया, गलत फेहमिया प्यार में तब्दील हो गयी और हमें पता ही ना चला था।
चलो देर से ही सही उसे समझ तो आया था
आधी रात को खामोशी में
खुले आसमान के निचे, चाँद सितारों की मौजूदगी में
मेरे यार ने मुझे गले तो लगाया था।
काबिल -ए-तारीफ़
बहुत बहुत धन्यवाद।
Wah
धन्यवाद।
बहुत खूब
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Very nice
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वाह
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सुन्दर
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