रिश्ता

August 24, 2019 in गीत

बढ़ती रात के साथ रजनीगन्धा महकता है
बिन लिबास की खुशबू से सारा समा बहकता है।
आज जो तू ने बिताए खिलखिलाते पल,
वो आकर तुझे ज़रूर हँसाएँगे कल।
दुनिया की परवाह में अपना वक्त जा़या न करना;
लोग क्या कहेंगे इस ख़याल से आँखें न भरना।
कौन कहता है बादलों में छुपा चाँद खूबसूरत नहीं?
सच मान हर रिश्ते को नाम की ज़रूरत नहीं!

ज़िद्दी

August 12, 2019 in शेर-ओ-शायरी

ये दिल बहुत ज़िद्दी है मेरा!
ग़मों की दौलत जमा करता है;
चोट दिल पर हो या जिस्म पर
हर ज़ख्म पे ग़ुमांं करता है।

ज़िद्दी

September 6, 2018 in शेर-ओ-शायरी

ये दिल बहुत ज़िद्दी है मेरा!
मंज़िल-द़र-मंज़िल सफ़र करता है
ठिकाना नहीं कोई इसका,
ये सड़कों पर बसर करता है

यादें

September 6, 2018 in गीत

बेवजह, बेसबब सी खुशी जाने क्यों थीं?
चुपके से यादें मेरे दिल में समायीं थीं,
अकेले नहीं, काफ़िला संग लाईं थीं,
मेरे साथ दोस्ती निभाने जो आईं थीं।

दबे पाँव गुपचुप, न आहट ही की कोई,
कनखियों से देखा, फिर नज़रें मिलाईं थीं।
मेरा काम रोका, हर उलझन को टोका,
मेरे साथ वक्त बिताने जो आईं थीं।

भूले हुए किस्से, कुछ टुकड़े, कुछ हिस्से
यहाँ से, वहाँ से बटोर के ले आईं थीं।
हल्की सी मुस्कान को हँसी में बदल गईं
मेरे साथ ठहाके लगाने जो आईं थीं।

वो बातों का कारवाँ चला तो थमा नहीं;
गुज़रे कल को आज से मिलाने जो आईं थीं।
बेटी से माँ तक के लम्बे सफ़र में
छोटी छोटी दूरियाँ इन्होंनें मिटाईं थीं।

सरहद के पहरेदार

August 11, 2018 in गीत

मीठी सी है वो हँसी तेरी, आँसू तेरा भी खा़रा है,
उन उम्र-दराज़ नज़रों का तू ही तो एक सहारा है।
मेंहंदी से सजी हथेली भी करती तुझको ही इशारा है,
कानों में गूँजी किलकारी ने पल-पल तुझे पुकारा है।

ये सारे बँधन छोड़ के तू ने रिश्ता एक निभाया है,
सरहद के पहरेदार तुझे पैगा़म सरहद से आया है।

जब-जब धरती माँ जलती है, संग-संग तू भी तो तपता है;
सर्द बर्फ़ के सन्नाटे में मीलों-मील भी चलता है।
दूर ज़मीं से, नील गगन में बेखौ़फ़ उड़ानें भरता है,
सागर की अल्हड़ लहरों से तू कितनी बातें करता है!

हर मौसम की तल्ख़ी को तू ने तो गले से लगाया है,
सरहद के पहरेदार तुझे पैग़ाम सरहद से आया है।

गुम नींदें हैं, आराम कहाँ, चैन भी कोसों दूर रहे
ग़ैरों की खातिर क्यों दूरी, तू अपनों से चुपचाप सहे?
दुश़्मन की गोली का किस्सा, वादी में बहता खून कहे,
पर तेरी कहानी हवाओं में क्यों गुमसुम हो खा़मोश बहे?

ये मुल्क कयों भूले बैठा है कि तू इसका सरमाया है,
सरहद के पहरेदार तुझे पैग़ाम सरहद से आया है।

इस मुल्क को तेरी याद आए, कुछ महीनों की तारीखों पर,
कुछ सोचा, कुछ लव्ज़ कहे, कुछ फूल रखे तस्वीरों पर।
क्यों पीछे खड़ी है तेरी ज़रूरत मतलब की फ़हरिस्तों पर?
जब तेरे लिए कुछ कर न सके, इल्ज़ाम लगा तकदीरों पर।

ये वही वतन है जिसने तुझको अक़्सर मुजरिम ठहराया है,
सरहद के पहरेदार तुझे पैग़ाम सरहद से आया है।

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