Akhileshwar
होता है सवेरा
July 7, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
भाग रहे मन को वश में कर
ध्यान ज़रा तू ख़ुद पर भी धर
तू आज़ाद है है एक परिंदा
क्या पाया होकर तूने ज़िंदा
भटक रहा है तू भी वैसे
और यहाँ पर भटकें जैसे
धैर्य रख और ध्यान कर
ना खुद पर तू अभिमान कर
इंसान हे तू नेक है
तू ख़ुद ही ख़ुद में एक है
क्या रहा तू अब फिर देख है
तुझ में भी तो विवेक है
अब उठा कदम और बढ़ जा आगे
होता है सवेरा जब तू जागे।।
ऊंचाई कितनी ही मिल जाये
July 5, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
ऊंचाई कितनी ही मिल जाये परिंदे को मगर,
बुझाने प्यास उसको भी ज़मीं पर आना पड़ता है।
नहीं उड़ती पतंग भी हरपल आकाश में,
उसे भी वक़्त आने पर कट जाना पड़ता है।
ना ये कर गुमां तूने पा लिया है आस्मां,
यहाँ हर शक्स को इस मिट्टी में मिल जाना पड़ता है।।