जरुरी तो नहीं

June 3, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

ये सही है कि तवायफों का जिस्म बिकता है ,

मगर ईमान भी बिकता हो – जरुरी तो नहीं .

ये सही है कि उनसे गलतियाँ हजारो हुई है रिश्ता निभाने में,

मगर हर मर्तबा हम ही सही हो – जरुरी तो नहीं .

ये सही है कि दिल टूट जाने के डर से कई बार सच नहीं बोला जाता ,

मगर हर झूठ दिल जीत ही ले – जरुरी तो नहीं .

  •  अनिल कुमार भ्रमर

जब कभी

May 17, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

सपने में भी जब कभी तुम्हारा ख्याल आता है तो –

दर्द से तड़फ कर जाग जाता हूँ मै  .

जब अंधेरो के सिवा कुछ मिलता नहीं वहां तो-

खुद ही खुद से घबरा जाता हूँ मै .

कभी गैर आकर रुला जाते है मुझको  तो-

कभी खुद की ही हरकतों से परेशां हो जाता हूँ मै .

आती नहीं जब कभी नींद रात को तो-

खुद ही खुद को थपकियाँ देकर सुलाता हूँ मै .

  • अनिल कुमार भ्रमर

 

पहले शख्स

April 30, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम पहले शख्स हो –

जिसे मैंने अपना हमराज बनाया है,

अपना हाले दिल सुनाया है,

वरना मुझे किसी पर एतबार नहीं .

तुम गैर मानुस हो अभी-

फिर भी लगता है बरसो से जानता हूँ तुम्हे,

पहली मर्तबा किसी को दोस्त कहा ,

वरना मेरा कोई यार नहीं .

गुबार ए जज्बात बिखेर कर तुम पर-

बहुत हल्का महसूस कर रहा हूँ खुद को ,

आज बैठ  कर तुम्हारे साथ दो घूंट पीऊंगा मै,

वरना मुझे जाम से प्यार नहीं .

–अनिल कुमार भ्रमर –

April 12, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

अभी अभी वो वर्तमान थे ,

अभी अभी वो अतीत हो गए .

वो कौन थे ? किसके थे वो ?

प्रश्न सब बेमानी बेकार हो गए .

ना वो थे किसी के,

ना बाकि किसी के लिए रह गए .

मिटटी से बने थे वो,

बस मिटटी में शामिल हो गए.

हमने तो

April 8, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ शब्द  कहे थे हमने तो,

वो शब्द जाने कब –

लोगो कि जुबान पर चढ़ गए

और किस्से हो गए .

हम तो सभी के थे ,

जाने कब हम –

बट गए उनके दिलो में और

मेरी जिंदगी के कितने हिस्से हो गए .

टूटता जा रहा हूँ मै

April 5, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

टूटता जा रहा हूँ मै .

छूटती हुई राहें-बढ़ता हुआ अँधेरा,

भटकता जा रहा हूँ मै .

टूटता  हुआ किनारा-उमड़ता हुआ सागर ,

डूबता जा रहा हूँ मै .

समाज का बंद कमरा-कमरे में मै अकेला,

घुटता जा रहा हूँ मै .

जिंदगी कि बेवफाई-निराशा कि गहराई,

टूटता जा रहा हूँ मै .

टूटता जा रहा हूँ मै .

-अनिल कुमार भ्रमर –

जज्बात ए इश्क

December 18, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

जज्बात ए इश्क ना छुपाता दिल में अपने –

गर ना होता डर ज़माने का .

नहीं डरता ज़माने से भी में –

गर डर ना होता मर जाने का .

मर भी जाता मै –

गर मेरी मौत से

तेरी जिंदगी बन जाने का यकीं होता..

बर्दाश्त नहीं होता

November 19, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम्हारे जाने का दर्द क्यों ना हो ए ख़ुशी,

हमसे तो दुखो के जाने का दर्द भी –

बर्दाश्त नहीं होता .

तुम्हारी चुप्पी सहन कैसे हो ए दोस्त,

हमसे तो दुश्मनों का चुप रहना भी-

बर्दाश्त नहीं होता .

तुम्हे जलन थी हमसे,

तुम्हारे जलने का दर्द क्यों ना हो ए महजबीं,

हमसे तो रात के चिराग का जलना भी –

बर्दाश्त नहीं होता .

 

 

 

किसके लिए

November 13, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

राह में गढ़ी है नजरें –

मगर किसके लिए ?

 

दूर दूर तक कोई नजर आता नहीं ,

हर तरफ है अँधेरा ही अँधेरा,

मै रौशनी कर तो लूँ –

मगर किस के लिए ?

 

जो मेरे साथ चले थे वो निकल गए आगे,

जो मेरे बाद आये थे वो भी निकल गए आगे,

मै रुक कर इन्तजार कर तो लूँ –

मगर किस के लिए ?

 

-अनिल कुमार भ्रमर –

 

 

 

2 मुक्तक

November 13, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

1- तुम आये तो बिना पिये ही

बेहोशी का अहसास करते है ,

वर्ना तो मयखाने कि सारी मय पीकर भी

होश बाकी था हमको I

 

2-पीते तब भी थे , पीते अब भी है ,

फर्क फकत इतना है साकी –

कि तब तेरे साथ बैठ कर पीते थे,

अब तेरी याद में पिया करते है I

 

जब कभी

October 11, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

सपने में भी जब कभी तुम्हारा ख्याल आता है-

तो दर्द से तड़फ कर जाग जाता हूँ मै .

जब अंधेरों के सिवा कुछ मिलता नहीं वहां-

तो खुद ही खुद से घबरा जाता हूँ मै .

कभी गैर आ कर रुला जाते  है मुझको –

तो कभी खुद की ही हरकतों से परेशां हों जाता हूँ मै .

जिसको भी चाहता हूँ कि भूल जाऊं –

रह रह कर उसे ही याद कर जाता हूँ  मै .

आती नहीं जब कभी नींद रात में –

खुद ही खुद को थपकियाँ देकर सुलाता हूँ मै .

-अनिल कुमार भ्रमर

 

 

 

आ जाओ कहाँ हो तुम

September 3, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

आ जाओ कहाँ हो तुम,

कहाँ हो तुम,कहाँ हो तुम .

तुम्हारी गफलत के अफ़साने,

करते फिरते है दीवानें,

ए परवानों तुम्हे क्या खबर है-

बुझ रही है शमां – कहाँ हो  तुम .

तूफानों ने ले ली है रफ़्तार,

मांझी ने छोड़ दि है पतवार,

डगमगा गई है नैया- कहाँ हो तुम .

ताल यहाँ है पर सुर कहाँ है,

मय यहाँ है पर साकी कहाँ है,

साँसें दे गई है जवाब- कहाँ हो तुम .

आ जाओ कहाँ हो तुम .

इस महफ़िल में

August 28, 2016 in शेर-ओ-शायरी

कुछ दीवाने थे , कुछ परवाने थे-

इस महफ़िल में,

शमां को जलाने के लिए सब थे बेताब-

इस महफ़िल में .

दर्द रक्काशा का कौन समझे यहाँ,

उसके हुस्न को ही चाहने वाले  थे सब –

इस महफ़िल में .

पैसों कि ही खनक सुनाई देती है यहाँ,

दर्द जज्बात भावनाए -ये सब बेगाने है-

इस महफ़िल में .

 

 

 

ऐसे ही

August 18, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ ख्याल आ गए ऐसे ही ,

कुछ शब्द लहरा गए ऐसे ही.

अपनों को जब देखा बदलते हुए परायों में,

कुछ दर्द हिला गए दिल को  ऐसे ही.

कल शाम अचानक उनका ख्याल आ गया,

कुछ अश्क भिगो गए आँखों को ऐसे ही .

 

 

क्या यही जीवन है

August 13, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

वही हर परेशानी की  सुबह,

वही हर परेशानी की शाम,

वही बिखरता हुआ मानव रोज़

एक से क्रिया कलापों को दोहराता हुआ ,

वही हर रोज़ दोनों समय

दो रोटी के लिए नुक्ता चीनी,

फिर वही परेशां होकर

आदमी का घर से निकल जाना,

फिर दिन भर इधर से उधर

लावारिस सडको पर भटक कर

शाम को बहके कदमो के साथ लोटना,

आकर पड़ जाना एक कोने में,

वही एक सी दिनचर्या

एक सा माहौल ,

कुछ भी तो परिवर्तन नहीं ,

क्या यही जीवन है ?

 

 

रुको ए मुसाफिर

August 10, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

रुको ए मुसाफ़िर अभी ना जाओ .

डस लेगी ये काली अँधेरी रात तुम्हे,

सहर तलक ठहर जाओ .

दूर है मंजिल तुमसे- राहे अनजान है,

डर है कहीं भटक ना जाओ .

कहीं एसा ना हो कोई अनजान पीछे से-

हाथ पकड़ कर आवाज़ दे तुमको,

और तुम बहक जाओ .

देखने दुनियां के तमाशे को –

लगी है भीड़ हर तरफ,

डर है कहीं तुम खो ना जाओ .

रुको ए मुसाफिर अभी ना जाओ .

कितना बदल गया हूँ मै

August 6, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

कितना बदल गया हूँ मै .

लग चुके है दाम

बाज़ार में मेरे ईमान के,

बिक गया हूँ मै .

तुम्हारे लिए क्या जिऊंगा मै-

ए दुनिया वालो,

जब खुद की ही  जिंदगी से

थक गया हूँ मै .

देखता रहता हूँ

हर वक़्त आईने में अपनी शक्ल,

कितना बदल गया हूँ मै .

चांदनी मेरे आंगन में

August 5, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

चाँद कि चांदनी को अपने आँगन में उतरने का ,

न्योता दे आऊं मै .

दरवाजा खोल कर खिड़कियाँ बंद कर दी है मैंने,

कहीं एसा ना हो दरवाजे से आकर ,

खिडकियों से निकल जाए वो,

और देखता रह जाऊं मै .

यहाँ देख कर अँधेरा कहीं वापस ना लोट जाए वो,

जरा तुम उधर नजर रखना तब तलक,

रौशनी के लिए चिराग जला लाऊं मै .

उफ़! चांदनी तो आ भी गई, और मै अभी तक तैयार नहीं,

अरे ठहरो जरा उसे रोको,

उसकी आरती के लिए दीप तो ले आऊं मै .

इतना बोझिल तो कभी नहीं हुआ मै

August 3, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

इतना तो बोझिल कभी हुआ नहीं मै.

मुकाम तो बहुत आए, बहुतो ने रोका भी,

पर इतना तो कभी रुका नहीं मै .

कुदरत तो हमेशा रुलाती आ रही है मुझको,

पर इतना तो कभी रोया नहीं मै.

उम्मीदे तो हमेशा बनी रही उम्मीदे,

पर इतना तो निराश कभी नहीं हुआ मै .

राहे सफ़र में कोई ना कोई साथ हो ही जाता था,

पर इतना तो अकेला कभी नहीं रहा मै.

इतना तो बोझिल कभी नहीं हुआ मै.

कविता

July 31, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

जब भी मै अकेलेपन का बोझ,

महसूस करता हूँ दिल पर अपने

तो कलम खुद ब खुद बन कर साथी

हाथ में मेरे आ जाती है,

और वो बोझ उतर कर दिल पर से ,

कागज़ पर सिमट आता है,

और उसका यह सिमटना ही,

आगे चल कर “कविता” कहलाता है.

 

जब श्रीमतीजी अफसर बनी

July 31, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

जब श्रीमतीजी अफसर बनी तो ,

हमारी ख़ुशी हो गई दो गुनी ,

हमने सोचा इसके दो दो लाभ होंगे,

एक तो बढेगा रुवाब हमारा,

दूसरा तंगी में चल रहे हाथ भी ढीले होंगे.

लेकिन ये ख़ुशी तो चाँद दिनों कि थी,

उनका अफसर बनना था, किस्मत हमारी फूटनी  थी.

अब तो वो घर में टिकती ही ना थी,

जहाँ भी जाती हमे आर्डर सुना जाती थी-

“मै जा रही हूँ फलां जगह,

इसलिए करना है घर का सारा काम तुम्हे”,

जब हम भी करते चले कि दरख्वास्त,

वो देती हमे तपाक से जवाब-

” तुम हो एक साधारण क्लर्क, और मै अफसर शानदार,

मुझे आती है शर्म जब तुम होते हो मेरे साथ”.

इतना सुनते ही मै शर्म से गढ़ जाता हूँ,

आगे कुछ कहने कि हिम्मत नहीं कर पाता हूँ.

अब तो क्या बताएं दोस्तों ये रोज़ का रूटीन हो गया है,

वो पार्टियों में घूमते है,हम चकले बेलन से जूझते है.

एसी बुरी किसी पर ना आये, जैसी हम पर आय बनी.

जब से श्रीमतीजी अफसर बनी…

 

हर एक जिंदगी

July 24, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

वक़्त की सलाखों के पीछे,

यहाँ है कैद हर एक जिंदगी .

फिर कौन सुने किसकी कराह,

यहाँ है कसक हर एक जिंदगी .

फिर कैसे मान लूँ कि

है तुम्हारी आँख में आँसू मेरे,

यहाँ है नकाब हर एक जिंदगी .

 

 

कैसे कहे

July 17, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

कैसे कहे कि याद तुम आते नहीं,

कैसे कहे कि दिल में हमारे उदासी नहीं.

तुम्हारे ही सहारे तो किश्ती छोड़ी है हमने,

कैसे कहे तुम हमारे मांझी नहीं.

तुम्ही ने खिलाये फूल मेरे ख्वाबो के,

कैसे कहे कि तुम हमारे माली नहीं.

जिंदगी चले

July 14, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

ग़मों की छाव तले ये मेरी जिंदगी चले.

मजबूरी ने कर दी है तार तार ओढनी,

हर मोड़ पर लुटती हुई ये मेरी जिंदगी  चले.

निराशा ने बुझा दिया है आशा का दिया,

अँधेरे में गिरते पड़ते मेरी जिंदगी चले.

मन टूट गया सपने बिखर गए सारे,

आँसुओ को लगाए गले ये मेरी जिंदगी चले.

जीने कि चाह ख़त्म हो गई अब,

शमशान कि और उठाए निगाहे ये मेरी जिंदगी चले.

मुक्तक

July 10, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

1- है बहुत सख्त वक़्त के क़ैद खाने कि सलाखे,
जिन्दगी लाख बन जाए पंछी – मगर उड़ नहीं सकती ।

2- हकीकत से मुह मोड़ने का प्रयास तो देखो,
अक्सर आईने तोड़ दिया करते है लोग ।

3 – अपनी किश्ती को खुद ही संभल ए मुसाफिर ,
अक्सर मांझी बन कर साथ छोड़ दिया करते है लोग ।

दो मुक्तक

July 9, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

1- आज दिल में बड़ी हलचल सी मचती रही,

बाद बहुत गौर करने के मालुम हुआ कि-

एक आंसू जो पिया था कल हमने ,

उसने तबाही मचा रखी थी.

2-जबसे नज़र अंदाज़ किया उनको,

उनकी नजरो का अंदाज़ बदलते देखा हमने,

जो रुखसार गुस्से से लाल हो जाया करते थे,

उन्ही रुखसारो को अब शर्म से लाल होते देखा हमने.

 

— बस यूँ ही

July 8, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

कारण या तो मेरा अहम् था – या मेरा बहम था,

अपनों से दूर होता गया मै  बस यूँ ही .

पता नहीं था कि कीमत चेहरों की होती है ,

मै अपने दिल को साफ़ रखता रहा बस यूँ ही .

वक़्त मेरे हिसाब से ना चलाना था – ना चला कभी,

मुगालते में महँगी घडी का –

पालता रहा शौक में बस यूँ ही .

तो अच्छा था

July 7, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

इल्ज़ाम तो बहुत लगे हम पर,

मगर खता का कोई

सबूत भी मिल जाता तो अच्छा था.

जिन्दगी की राहों में लोग तो बहुत मिले ,

मगर उनमे से कोई अपना बन कर

मिल जाता तो अच्छा था.

होकर भी गुमनाम रहे हम  उनकी महफ़िल में,

चर्चा कभी हमारे होने का भी

हो जाता तो अच्छा था.

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