Aniruddh Trivedi
सार्थक भाव विक्षेप
January 14, 2018 in गीत
अवसाद का विक्षोभ नीरव, चपल मन का क्लांत कलरव
देखता पीछे चला है लगा मर्मित स्वरों के पर ।
शुष्क हिम सा विकल मरु मन, भासता गतिशील सा अब,
भाव ऊष्मा जो समेटे बह चला कल कल हो निर्झर।
विगत कल में था जो मन मरु और अस्तु प्रस्तर,
विकलता का अमिय पी फूटा था अंकुर।
हूँ अचंभित आज मै खुद, पा वो खोया अन्तः का धन,
धन की जो था विस्मृत सा, मन विपिन में लुट गया था,
स्वार्थ और संकीर्णता के चोर डाकू ले उड़े थे।
आज लौटाया उन्हीनें हो शुचित उस विकलता मन्दाकिनी में डूबकर फिर….
दृष्टि ये धुल सी गई है, सामने सृष्टि नई है,
जगत सारा मित्र है अब, शत्रु अब कोई नहीं है ।
अधर पर मुस्कान है अब, ना कोई अनजान है अब,
विगत कल की स्वार्थपरता आज का अज्ञान है अब।
विसम दृष्टित भाव जो थे सघन गुम्फित वेदना पुष्पावली के सघन भीतर
वस्तुतः संचित किये सम्भाव्य विधि के अनकहे स्वर ।
अस्तु आवश्यक विकलता खोजने निज वास्तविक मन,
वरन खो देंगे खुद ही को, बना कृत्रिम शुष्क जीवन,
मन विटप का तृषित चातक पा गया क्षण स्वाति का जल…..