भगवान

October 14, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

यह डगर है अनजान ,सफर भी लम्बा बड़ा,

गंतव्य की खोज में, तू यहाँ अकेला खड़ा

पीछे हैं तिमिर के बादल ,आगे संसार पड़ा ,

रुक न पलभर को राही , हिम्मत के कदम बड़ा ई

विजन हैं राहें तेरी , कोई न तेरे संग है

तूफ़ान में तेरी कश्ती  है , तू ही  साहिल  की  तरंग  है

न दर अगर कठिन राह हो , राही तू मलंग है

तू ही जाएं का रंगसाज़ है, तू ही कुदरत  का रंग  है

मंज़िल तेरी एक है , लेकिन एक पथ है

सिर्फ एक सही राह है , बाकी सब विपथ है,

उस राह को न छोड़ तू , वाही राह विजयपथ है

हिम्मत न हार राही , हिम्मत ही तेरा रथ है

पलभर की अँधेरी रात है , फिर दिवस महान है,

क्षितिज की गोद से निकलता , एक नया आहाँ  है

एक नई रौशनी के लिए लिए, तेरा आज कुर्बान है ,

न रुक  अगर दीवारें  हो खड़ी  , तू एक बड़ी  चट्टान   है

शिखर  की ओर  बड़  चले कदम , अब उन्हें न थाम दे,

मंज़िल  तेरी  पास  है  , अब  न सफर  को  विराम  दे ई

हौंसलों की दीवार हिल पड़े , पलभर को न आराम दे ,

भूल जा सारे दुःख  अपने , अपने दर्द को ख़ुशी का नाम दे

शिखर पर खड़ा तू, लहराता विजयध्वज विशाल है,

अम्बर से बरस रहा है अमृत , मिट रहा अकाल है ,

तेरी मंज़िल चरणों में है , लेकिन  विजयपथ लहू से लाल है ,

आरम्भ है नए संसार का, मगर तेरा अंतकाल है

हर नए ज़माने को जनम कुछ मस्ताने दे जाते हैं,

उनके बलिदान , उनके कर्म ही अफ़साने लिख  जाते हैं

कुछ नहीं ले जाते जहां से , सभी को जीवनदान दे जाते हैं ,

इन्हीं वीरों को याद करते हैं , जिन्हे हम भगवान बुलाते हैं