Chitta

July 10, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

NASHA

April 28, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

चल अाज सब कुछ भुला के एक मज़ा सा करते हैं,
तफ़रीकें मिटा के दिल-ओ-दिमाग़ को एक रज़ा सा करते हैं,
दुनिया की सुद्ध में बुद्ध खो बैठे हैं,
चल आज खुद को खुदी का एक नशा सा करते हैं …

आज पहले जैसा कुछ नहीं, कुछ अनोखा सा करते हैं,
हाँ में हाँ मिला कर चलते रहे अब तक,
आज हाँ को ना बता कर वादों से एक धोखा सा करते हैं,
चल आज खुद को खुदी का एक नशा सा करते हैं …

अलहदगी मिटा के दोनों को एक अहदा सा करते हैं,
हर नज़र की नज़र में ख़लकते रहे आज तक,
आज आँखें मीच कर इस दुनिया से एक परदा सा करते हैं,
चल आज खुद को खुदी का एक नशा सा करते हैं …

आज विचारों का फेर-बदल नहीं, ख्वाबों का एक सौदा सा करते हैं,
कुछ ख्वाब तुम देना कुछ ख्वाब मैं दूँगा,
दिल की बस्ती में ख्वाबों का एक घरौंदा सा करते हैं,
चल आज खुद को खुदी का एक नशा सा करते हैं …

चल आज कहीं दूर उड़ जाने का एक इरादा सा करते हैं,
तुम पंछी बन जाओ मैं हवा का झोंका बन जाता हूँ,
हमेशा के लिए इस जहान को एक अलविदा सा करते हैं,
चल आज खुद को खुदी का एक नशा सा करते हैं …

चल अाज सब कुछ भुला के एक मज़ा सा करते हैं,
चल आज खुद को खुदी का एक नशा सा करते हैं …

MAAF KARNA ASIFA

April 16, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

सिर्फ एक तसवीर है , एक चेहरा है
जानता नहीं हूँ कि कौन थी वो ,
पर आँखों में नूर देख यकीन से कहता हूँ
कि जो भी थी , जैसी भी थी अच्छी थी वो ,
गैरों के हाथ पकड़ साथ चल पड़ी
रूह से पाक दिल से सच्ची थी वो ,
इन्सानियत में छुपी हैवानियत देख न पायी
हाँ अभी अकल से कच्ची थी वो ,
लेकिन तुम तो सियाने थे ,
पढ़े -लिखे थे , मासूमियत ही देख लेते
शैतानो ! आठ साल की नन्ही बच्ची थी वो ।

लेकिन गलती उसी की थी
ग़ैर -हिन्दू हो के भी मंदिर चली गयी
शायद मज़हबों के खेल से अनजान थी वो ,
रोई होगी , चिलायी भी होगी जब नोच रहे थे उसे
लेकिन किसी ने भी सुना तक नहीं
शायद बेज़ुबान थी वो ,
लेकिन तुम्हारे तो कान थे तुम सुन सकते थे
आँखें थी तुम्हारी तुम देख सकते थे
खिलौनों में खेलती कोमल सी जान थी वो ,
और हाँ अब भी झुंड बना के हम
बचा रहे हैं उसके कातिलों को
क्यूँकि हम हिन्दू और मुसलमान थी वो ।

हो सके तो माफ़ करना आसिफा , साथ दे न पाए
जब उन दरिंदों से अकेले लड़ी थी तुम ,
अपने ही हाथों हमने खो दिया तुम्हें ,
क्यूँकि हमारी नियत से कहीं बड़ी थी तुम ,
आज भी यह लिख के कलम तो तोड़ दूँगा ,
लेकिन तुम्हे इन्साफ दिला ना पाउँगा मैं ,
माफ़ करना आसिफा , तुम्हारी इस मौत को
किसी कानून के दायरे में ला ना पाउँगा मैं ,
उम्र भर भी इस कलम से लिख के सुलझा ना पाउँगा मैं ,
जो आज आँखों में सवाल लिए पास खड़ी थी तुम।
माफ़ करना आसिफा, हमारी नियत से कहीं बड़ी थी तुम ।
हमारी नियत से कहीं बड़ी थी तुम ।।

HASRAT

March 4, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

मत पूछो कि क्या हसरत है मेरी ,

हसरतें जताऊँ यह ना फ़ितरत है मेरी ,

जताने से मिल जाये मुझे चाहत जो मेरी ,

खुदी को जानता हूँ यह ना किस्मत है मेरी।

मत पूछो कि क्या हसरत है मेरी …

To read full poem kindly visit the following link…

http://www.alfaz4life.com/2017/08/hasrat.html?m=1

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