पैसे का रुतबा

January 30, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

बदल गया है दुनियाँ अब,यहां पैसे वालों का बोलबाला है,
पहले रुतबा ज्ञानी का था,अब रुतबा बेईमानी का है!!

सब कुछ पैसा ही है,हर जगह यही पाठ पढ़ाई जाती है,
इंसान दूर हो रहे एक दूजे से,पैसे वालो की यही कहानी है!!

न्याय कहाँ मिल रहा गरीबों को,कानून बन गया अंधा है,
अमीरों को न्याय पैसों से मिलता,जुर्म बन गया धंधा है!!

जब तेरे पास पैसा है, इंसान पुछेगा तु कैसा है,
सारे उल्लू चुग रहे होते पैसे, यदि पेड़ में उगते पैसे रहें!!

कभी गले में माला पहनवाता,कभी मुँह भी काला करवाता पैसा है,
झूठ को सच और सच को झूठ,पैसों के बल पर ऐसा भी होता है!!

बदल गया है दुनियाँ अब,यहाँ पैसे वालों का बोलबाला है,
पहले रुतबा ज्ञानी का था, अब रुतबा बेईमानी का है!!