Avantika Singh
सुबह हो रही है
July 16, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
सुनहरी सुनहरी
सुबह हो रही है
कहीं शंख
ध्वनियाँ कहीं पर अज़ानें
चलीं शीश श्रद्धा चरण में झुकानें
प्रभा तारकों की स्वतः
खो रही है
प्रभाती
सुनाते फिरें दल खगों के
चतुर्दिक सुगंधित हवाओं के झोंके
नई आस मन में उषा
बो रही है
ऋचा कर्म
की कोकिला बाँचती है
लहकती फसल खेत में नाचती है
कली ओस बूँदों से मुँह
धो रही है
– Avantika