हो हार या कि जीत हो

December 14, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

हो हार या कि जीत हो, करता रह प्रयास तू।।
प्रथम रख तू धर्म को, करता रह तू कर्म को।।
कर समस्या का सामना, समाधान तू खोजना।।
हो हार या कि जीत हो, करता रह प्रयास तू।।
कठिन है तो क्या हुआ, मार्ग है तेरा चुना।।
और है अगर तेरा चुना, तो कर चुनौती का सामना।।
है यही धर्म है यही कर्म, है यही तेरी साधना।।
हो हार या कि जीत हो, करता रह प्रयास तू ।।

अंत ही आरंभ है

December 10, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

बड़ रहा अधर्म है, बड़ रहे कुकर्म हैं।
इनके जवाब में आज वो उठ खड़ी।।
तोड़ कर सब बेड़ियाँ, हुंकार है भरी।
अपने स्वाभिमान के लिए है वो उठ खड़ी।
संयम त्याग कर, ललकार है भरी।
ललकार प्रचंड है, तांडव का आरंभ है।
धैर्य का टूटना आरंभ है विनाश का।
विनाश ये प्रचंड है, भयावह अब अंत है
अंत ही आरंभ है, यही तो प्रसंग है।।।

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