विजय मिली विश्राम न समझो

September 29, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

ओ विप्लव के थके साथियों
विजय मिली विश्राम न समझो
उदित प्रभात हुआ फिर भी छाई चारों ओर उदासी
ऊपर मेघ भरे बैठे हैं किंतु धरा प्यासी की प्यासी
जब तक सुख के स्वप्न अधूरे
पूरा अपना काम न समझो
विजय मिली विश्राम न समझो

पद-लोलुपता और त्याग का एकाकार नहीं होने का
दो नावों पर पग धरने से सागर पार नहीं होने का
युगारंभ के प्रथम चरण की
गतिविधि को परिणाम न समझो
विजय मिली विश्राम न समझो

तुमने वज्र प्रहार किया था पराधीनता की छाती पर
देखो आँच न आने पाए जन जन की सौंपी थाती पर
समर शेष है सजग देश है
सचमुच युद्ध विराम न समझो
विजय मिली विश्राम न समझो

गाँव मेरा

September 19, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

इस लहलाती हरियाली से , सजा है ग़ाँव मेरा…..
सोंधी सी खुशबू , बिखेरे हुऐ है ग़ाँव मेरा… !!

जहाँ सूरज भी रोज , नदियों में नहाता है………
आज भी यहाँ मुर्गा ही , बांग लगाकर जगाता है !!

जहाँ गाय चराने वाला ग्वाला , कृष्ण का स्वरुप है …..
जहाँ हर पनहारन मटकी लिए, धरे राधा का रूप है !!

खुद में समेटे प्रकृति को, सदा जीवन ग़ाँव मेरा ….
इंद्रधनुषी रंगो से ओतप्रोत है, ग़ाँव मेरा ..!!

जहाँ सर्दी की रातो में, आले तापते बैठे लोग……..
और गर्मी की रातो में, खटिया बिछाये बैठे लोग !!

जहाँ राम-राम की ही, धव्नि सुबह शाम है………
यहाँ चले न हाय हेलो, हर आने जाने वाले को बस ” सीता राम ” है !!

भजनों और गुम्बतो की मधुर धव्नि से, है संगीतमय गाँव मेरा….
नदियों की कल-कल धव्नि से, भरा हुआ है गाँव मेरा !!

जहाँ लोग पेड़ो की छाँव तले, प्याज रोटी भी मजे से खाते है ……
वो मजे खाना खाने के, इन होटलों में कहाँ आते है !!

जहाँ शीतल जल इन नदियों का, दिल की प्यास बुझाता है …
वो मजा कहाँ इन मधुशाला की बोतलों में आता है…. !!

ईश्वर की हर सौगात से, भरा हुआ है गाँव मेरा …….
कोयल के गीतों और मोर के नृत्य से, संगीत भरा हुआ है गाँव मेरा !!

जहाँ मिटटी की है महक, और पंछियो की है चहक ………
जहाँ भवरों की गुंजन से, गूंज रहा है गाँव मेरा…. !!

प्रकृति की गोद में खुद को समेटे है गाँव मेरा ……….
मेरे भारत देश की शान है, ये गाँव मेरा… !!

गणपति अपने गाँव चले

September 6, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

गणपति बप्पा मोरया, पुड्च्या वर्षी लौकरया
मोरया रे, बप्पा मोरया रे \-४

गणपति अपने गाँव चले, कैसे हमको चैन पड़े
जिसने जो माँगा उसने वो पाया,
रस्ते पे हैं सब लोग खड़े

गणपति बप्पा दुख हरता, दुख हरता भाई दुख हरता

दस दिन घर में आन रहे, भक्तों के मेहमान रहे
सारे शहर में धूम मची, जोश से जनता झूम उठी
उनको प्यारे सब इंसान राजा रंक हैं एक समान
दुख हरता भाई दुख हरता

किसी को कुछ वरदान दिया, किसी को कोई ज्ञान दिया
हैं चले सभी को ख़ुश करके, खाली खाली झोलियों को भरके
आयेंगे साल के बाद इधर, लोग करेंगे याद मगर

थोड़े ही दिन रहे, थोड़े दिनों में करके चले ये काम बड़े
सारे घर उनको घर हैं, उनको एक बराबर हैं
ऊँचे महल अमीरों के हों या हम गरीबन के झोपड़े

मस्त पवन ये फिर ले आई, मौजों की नैया लाई
गणपति उस पार चले, लेकर सबका प्यार चले
सफल हुई सबकी पूजा, ऐसा न कोई बिन दूजा
घटा गगन पर लहराई, घड़ी विसर्जन की आई
भूल चूक हो माफ़ हमारी, हम सब हैं बड़े नादान बड़े ।

 

– Feran

देशभक्ति का पाठ पढ़ाना होगा

August 2, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

जाति धर्म देखे बिना, देशद्रोहियों को अपने हाथों से मिटाना होगा
नई पीढ़ी को अभिमन्यु सा, गर्भ में देशभक्ति का पाठ पढ़ाना होगा

तुम्हें व्यक्तिवाद छोड़कर राष्ट्रवाद अपनाना होगा
हर व्यक्ति में भारतीय होने का स्वाभिमान जगाना होगा

लोकतंत्र को स्त्तालोलुपों से मुक्त कराना होगा
देशभक्ति को भारत का सबसे बड़ा धर्म बनाना होगा

वीरता की परम्परा को आगे बढ़ाना होगा
हर भारतीय को देश के लिए जीना सिखाना होगा

– Feran

बीते लम्हे

July 16, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

बीते लम्हे मुझे आए याद

बारिशों की वो रंगीन बूँदें
ख़्वाब में खोई मीठी-सी नींदें
दूर तक जुगनुओं की बरातें
रातरानी से महकी वो रातें
बीते लम्हे मुझे आए याद

चाँदनी का छतों पर उतरना
प्यार के आइनों में सँवरना
ओस का मुस्कराना, निखरना
फूल पर मोतियों सा बिखरना
बीते लम्हे मुझे आए याद

वो निगाहों के शिकवे गिले भी
चाहतों के हसीं सिलसिले भी
छू गईं फिर मुझे वो हवाएँ
जिनमें थीं ज़िन्दगी की अदाएँ
बीते लम्हे मुझे आए याद

बारिश हो रही है

July 11, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

बारिश हो रही है
तुम बार-बार देखती हो आकाश
चमकती हुई बिजली को देखकर
चिहुँक उठती हो

जितने भूरे-भूरे काले-काले
बादल हैं आकाश में
ये समुन्दर का पानी पीकर
धरती के ऊपर हाथी की सूंड़
की तरह झुके हुए हैं
ख़ूब बारिश हो रही है
तुम्हें बारिश अच्छी लगती
है न प्रिये

वे तुम्हारे अच्छे दिन होते हैं
जब बारिश होती है
तुम्हें कालेज नहीं जाना पड़ता
तुम अपने खाली फ्रेम पर
काढ़ती हो स्वप्न
अनगिनत कल्पनाओं में
खो जाती हो

कितना कठिन आकाश है
तुम्हारे ऊपर
जिसमें जगमगा रहे हैं तारे
तुम्हारे हाथ इतने लम्बे नहीं
कि तुम उन्हें तोड़ सको

कुछ उमड़ते हुए बादल
मैंने तुम्हारी आँखों में
देखे हैं
जिस दिन वे बरसेंगे
सारी दुनिया भीग जाएगी

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