मर रहा हूं मैं बार बार

December 10, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

कोई ख्याल है जो बस गया है दिल में
इक सवाल है जो उठता रहता है बार बार
जिंदगी हो रही है बसर, मगर
मर रहा हूं मैं बार बार

बाकी सब ले गया मेरा ‘सब कुछ’

November 29, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ हर्फ़, चंद अहसास और कुछ खारे से मोती
यही सब बचा है मेरे पास,
बाकी सब ले गया मेरा ‘सब कुछ’

कोई खिडकी न खुले और गुजर जाऊं मैं

November 14, 2015 in ग़ज़ल

हादसा ऐसा भी उस कूचे में कर जाऊं मैं
कोई खिडकी न खुले और गुजर जाऊं मैं

सुबह होते ही नया एक जजीरा लिख दूं
आज की रात अगर तह में उतर जाऊं मैं

मुन्तजिर कब से हूं इक दश्ते करामाती का
वह अगर शाख हिला दे तो बिखर जाऊं मैं

जी में आता है कि उस दश्ते सदा से गुजरूं
कोई आवाज ना आये तो किधर जाऊं मैं

सारे दरवाजों पे आईने लटकते देखूं
हाथ में संग लिये कौन से घर जाऊं मैं

मैं पानी का आईना हूं

November 12, 2015 in ग़ज़ल

टूटता हूं फिर से जुड जाता हूं
मैं पानी का आईना हूं

घर से लिये हूं रात का सूरज
कहने को मिट्टी का दीया हूं

गले गले है पानी लेकिन
धान की सूरत लहराता हूं

रस की सोत बनेगी दुश्मन
गन्ने सा चुप सोच रहा हूं

गायब हर मंजर मेरा

November 9, 2015 in ग़ज़ल

गायब हर मंजर मेरा
ढूढ़े परिंदा घर मेरा

जंगल में गुम फ़स्ल मेरी
नदी में गुम पत्थर मेरा

दुआ मेरी गुम सर सर में
भंवर में गुम महवर मेरा

नाफ़ में गुम सब ख्वाब मेरे
रेत में गुम बिस्तर मेरा

सब बेनूर क्यास मेरे
गुम सार दफ़्तर मेरा

कभी कभी सब कुछ गायब
नाम कि गुम अक्सर मेरा

मैं अपने अंदर की बहार
बानी क्या बाहर मेरा

तेरी सदा का है सदयों से इन्तेजार मुझे

November 8, 2015 in ग़ज़ल

तेरी सदा का है सदयों से इन्तेजार मुझे
तेरे लहू के समंदर जरा पुकार मुझे

मैं अपने घर को बुलंदी पे चढ के क्या देखूं
उरूजे फन! मेरी देहलीज पर उतार मुझे

उबलते देखी है सूरज से मैनें तारीकी
न रास आएगी यह सुबह जरनिगार मुझे

कहेगा दिल तो मैं पत्थर के पॉव चूमूंगा
जमान लाख करे आके संगसार मुझे

वह फ़ाका मस्त हूं जिस राह से गुजरता हूं
सलाम करता है आशोब रोजगार मुझे

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