नाराज़गी

June 6, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरी ग़ज़ल सग्रंह की बुक “नाराज़गी” बहुत जल्द आपके सामने होगी ।ये सब आपकी दुआओं का असर है । बेहद शुक्रिया । आपका लकी निमेष

Ghazal

June 1, 2018 in ग़ज़ल

उत्कर्ष मेल में पहली बार मेरी ग़ज़ल बहुत बहुत शुक्रिया संपादक महोदय जी का । आपका सहयोग यूँ ही बना रहे ।

Dard Purana

April 13, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

लिकं पर मेरी ग़ज़ल सुने डॉ सुजीत जी की आवाज़ में और चैनल सब्सक्राइब जरूर करे । दोस्तो में लिकं शेयर करना ना भूले ।

  • आपका लकी निमेष

 

Tuje Dil se bhulana chahata hu

April 13, 2018 in ग़ज़ल

कच्ची मिट्टी के जैसी मै धीरे धीरे धँसती हूँ

April 8, 2018 in ग़ज़ल

कच्ची मिट्टी के जैसी मै धीरे धीरे धँसती हूँ

मै लडकी हूँ इस आँगन की तब ही इतनी सस्ती हूँ

 

लोग लगाएगें बोली मेरी बडे सलीके  से

लोग तमाशा देखेगें कि मै कितने में बिकती हूँ

 

मेरी मर्जी का मोल नही है मेरे ख्वाब की क्या कीमत

कोई नही पूछेँगा मुझसे मै क्या हसरत रखती हूँ

 

मेरा कद बढता है तो फिर बाप के काधेँ झुकते है

मै गीली लकडी चूल्हे की धीरे धीरे जलती हूँ

 

मुझको क्या उम्मीद ‘लकी’ अब इस दुनिया मे आने की

माँ की कोख में सदियों से मै डरती डरती पलती हूँ

नया साल

December 23, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

ये नये साल का मौसम भी खुशगवार नही
ऐसा लगता है मुझे अब किसी से प्यार नही

कई सालो से मुझे ग़म बहुत सताते है
कई सालो से मेरे साथ में ग़मख्वार नही

जान दे दूँ उसे तोहफे में नये साल को मै
उससे मिलने के मगर कोई भी आसार नही

बदलते साल से तो ज़ख्म नही भरते है
और फिर मै भी पिघल जाऊं वो लाचार नही

बहुत जल्दी से गुजरता है यहाँ हर साल
और कदमों में मिरे पहली सी रफ्तार नही

खरीद लूँ मै ‘लकी’ इक खुशी तेरी खातिर
पर मेरे शहर खुशियों का वो बाज़ार नही

दीवाली

May 16, 2017 in ग़ज़ल

इस दीपक में एक कमी है,,,,
हर सैनिक की याद जली है ।।।।।।।
जिसने दी आज़ादी हमको,,,,,,,,,
उनकी बेहद कमी खली है ।।।।।
दुश्मन को मारा सरहद पे,,,,,,,,,,
तो दीवाली आज मनी है ।।।।।।।
देखो इनको भूल न जाना,,,,,,,,,,,
जो अब तेरे बीच नही है ।।।।।।।
जिसने खोया अपना बेटा,,,,,,,,,,
उन माँओं की आह सुनी है ।।।।।
देके खुशियाँ हम लोगो को,,,,,,,
गोली खुद के लिये चुनी है ।।।।।
अपने भाई के आने की,,,,,,,,
बहना को इक आस लगी है ।।।।
तुम बिन सूने सारे दीपक,,,,,,,,,
बेवा सी दीवार खडी है ।।।।।।।
कैसे भूले बाते उसकी,,,,,,,,,,
हर कोने में याद बसी है ।।।।।
रौशन है घर सारा मेरा ,,,,,,,,,,,
उनके घर में रात जमी है ।।।।।।
दीवाली की पूजा है पर,,,,,,,
उसके पापा और कहीं है ।।।।।।।।
सूनी दरवाजे की झालर,,,,,,,
रंगोली बेकार सजी है ।।।।।।।
दीवाली पे रोके कैसे,,,,,,,
माँ की आँखे नीर भरी है ।।।।।।।
मज़बूरी त्यौहार मनाना,,,,,,,,
आई ये दुश्वार घड़ी है ।।।।।।
मरके खुशियाँ देने वाले,,,,,,,
तेरी ये सौगात बडी है ।।।।।।
ना लिख पाऊ दिल की हालत,,,,,
होता अब खामोश ‘लकी’ है ।।।।।।

जंग

May 16, 2017 in ग़ज़ल

ज़िन्दगी

May 16, 2017 in ग़ज़ल

इस तरह उलझी रही है जिन्दगी,,,,,,
कोन कहता है सही है जिन्दगी।।।।।
उलझनो का हाल मै किससे कहु,,,
आँख के रस्ते बही है जिन्दगी।।।।
अब नही पढना नशीब में इसे,,,
गर्द सी मुझपे जमी है जिन्दगी।।।
ना सुकूँ है दिल बडा बेचैन है,,,
आग के जैसे जली है जिन्दगी।।।।
उलझनो में ही सदा उलझा रहा,,,,
मकङियो के जाल सी है जिन्दगी।।।
ख्वाब है ना आखँ में नींदे कहीं,,,,,
खार सी चुभने लगी है जिन्दगी।।।
फुरसतो के पल नही मिलते मुझे,,,
काम में ऐसी दबी है जिन्दगी।।।।
मन्जिलो का भी निशाँ मिलता नही,,,,
कोन से रस्ते चली है जिन्दगी।।।।।

साजन

May 16, 2017 in ग़ज़ल

तुझको ही बस तुझको सोचू इतना तो कर सकती हूँ,,,,,,,,,
तेरे ग़म को अपना समझू इतना तो कर सकती हूँ ।।।।।।।।।।
मुझको क्या मालूम मुहब्बत कैसे करती है दुनिया,,,,,,,
हद से ज्यादा तुझको सोचू इतना तो कर सकती हूँ ।।।।।।।।।
इस दिन को तू मेरे सजना इतना तो ह़क दे देना,,,,,,,,,,,,
छलनी में से तुझको देखू इतना तो कर सकती हूँ ।।।।।।।।।
आज मुबारक वो दिन आया सामने मेरा साजन है,,,,,,,,,,
तेरे ग़म के आँसू पी लू इतना तो कर सकती हूँ ।।।।।।।।।।।
दो-दो चन्दा मेरे आगे आज खुशी का दिन है ये,,,,,,,,,,,
इक पल में ही सदियाँ जी लू इतना तो कर सकती हूँ

लिखना पढना छोड दिया तू बात करे हथियारो की,,,,,,,,,,,,
किसने तेरे दिल में भर दी ये बाते अंगारो की ।।।।।।।।।।।
कोमल तेरे दिल को आखिर किसने पत्थर कर डाला,,,,,,,,,,
जो तू फिक्र नही करता है प्यार भरे त्यौहारो की।।।।।।।।।
लड़वाऐगें तुझको ये तो मरवाऐगें आपस में,,,,,,,,,,,,,,,,
जाने तू क्यो बाते माने मज़हब के सरदारो की ।।।।।।।।।
गुरबत में मर जाये चाहे बात करेगें धर्मो की,,,,,,,,,,,,
ऐसी नीति रही है लोगो अब तक की सरकारो की ।।।।।।।।
अनपढ है ये जाहिल है ये,गुरबत में ही जाते है,,,,,,,,,
हर इक लफ्जो में लिखता हूँ बाते मै लाचारो की ।।।।।।।।।।
छोटे छोटे इन हाथो में दिखती है बन्दूक यहाँ,,,,,,,,,,,,,
नस्ल हमारी चलती है अब धारो पे,तलवारो की।।।।।।।।।
सबके हाथो में है खन्ज़र और किताबे छूट गयी,,,,,,,,,
ऊचाँई बढती जाती है नफरत की दीवारो की ।।।।।।।।।।।।
आपस में लड़ते रहने से हासिल क्या तुझको होगा,,,,,,,,,
चाँदी रोज़ कटी है बस धर्मो के ठेकेदारो की।।।।।।।।।।।।।।
डर बिकता, भय बिकता है और बिका है खून ‘लकी’,,,,,,,,,,
गिनती रोज़ बढी जाती है दहशत के बाजारो की ।।

मिट्टी से भी खुशबू आये गाँव हमारा ऐसा है,,,,,,,,,
जैसे खोई जन्नत पाये गाँव हमारा ऐसा है ।।।।।।।।।
तेरी आँखो का हर आँसू पौँछे प्यार मुहब्बत से,,,,,,,
रोता रोता तू मस्काये गाँव हमारा ऐसा है ।।।।।।।।
देखो अपने महमानो की इज्जत इतनी करते है,,,,,,
चाहे खुद भूखे रह जाये , गाँव हमारा ऐसा है ।।।।।।।
कैसे भी हालातो में भी साथ नही छोडेगें वो,,,,,,,,,
झगड़ा अपना खुद निपटाये गाँव हमारा ऐसा है ।।।।
कोई सुख हो या कोई दुख साथ हमेशा देते है,,,,,,,
गलती पे मिल कर समझाये गाँव हमारा ऐसा है ।।।
इक दूजे की खातिर अपनी जान गवाँ सकते है ये,,,,,,
दुश्मन से भी जा टकराये गाँव हमारा ऐसा है ।।।।।।
हर हालत में खुश रहते है चाहे लाख गरीबी हो,,,,,,,
सुख हो चाहे गम के साये गाँव हमारा ऐसा है ।।।।।।।
भोले भाले इन लोगो पर कैसे फिर इल्जाम लगे,,,,,,
जो आपस की कस्मे खाये गाँव हमारा ऐसा है ।

पसीना वो बहाकर देख बच्चो को खिलाता है,,,,,
जलाके खून सारा दूध वो उनको पिलाता है ।।।।।
अदाकारी गरीबो में गरीबी ला ही देती है,,,,,
जिसे ग़म भी हजारो है वही हँसकर दिखाता है ।।।
अमीरो सीख लो जाकर हुनर तुम भी गरीबो का,,
कि आँसू आँख में होते हुऐ कैसे छिपाता है ।।।।।।
खुशी तो चीज ऐसी है खुशी में रो ना पाओगे,,,,,
मगर जो है बहुत बेबस वही सबको हसाँता है ।।।।
बडा अफ़सोस होता है ख़ुदा की रहमतो पे अब,,,,
उसी सर पे नही छप्पर हवेली जो सजाता है ।।।।।
करू ना क्यूँ ‘लकी’ मै फ़ख्र उन बेबस गरीबो पर,,
निवाला छोड देता है मगर बच्चे पढाता है ।।।

￰वतन

May 16, 2017 in ग़ज़ल

वतन पे है नजर जिसकी बुरी उसको मिटा देगें,,,
सबक ऐसा सिखा देगें कि धड से सर उडा देगें।।

जहाँ पानी बहाना है वहां पर खून देगें हम,,,
वतन से प्यार कितना है जहाँ को हम दिखा देगें।।

हजारो साल काटे हैं गुलामों की तरह हमने,,,
नहीं अब और सहना हैं ये दुनिया को बता देगें।।

कसम है उन शहीदों की लुटा दी जान सरहद पे,,,
उसी रस्ते चलेंगे और अपना सर कटा देगें।।

हमारे गाँव का बच्चा नहीं है कम किसी से भी,,,
जहाँ भी पावं रख देगें वहां धरती हिला देगें।।

समन्दर कांप जाएगा ये दरिया सूख जाएगा,,,
कि ऐसी आग भर देगें सभी मुर्दे जगा देगें।।

मेरा हर शब्द अगांरा मेरा हर लफ्ज़ है बिजली,,,
जहाँ दुश्मन दिखा हमको ‘लकी’ उसको जला देगें।।

वो औरत

May 16, 2017 in ग़ज़ल

करे हैं काम वो इस धूप में जलती सी इक औरत,,,
गमों को झेल लेती है सभी, गहरी सी इक औरत।।।

बडों का मान रखती है झुकी रहती है कदमो में,,,
कि रिश्तों के दरख्तों पे लगी टहनी सी इक औरत।।

थकी जाती है सारे दिन घरों के काम में लेकिन,,,
सजन के वास्ते पल में सजी सवंरी सी इक औरत।।

सभी इल्जाम दुनिया ने इसी पर थोप रक्खे हैं,,,
खड़ी रहती है दरवाजे पे वो सहमी सी इक औरत।।

चटकती धूप में सबके लिए रोटी बनाती हैं,,,
जला देती है अपने ख्वाब वो सुलगी सी इक औरत।।।

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