
Manoj Kumar

फलक के चाँद से,
October 20, 2025 in हिन्दी-उर्दू कविता
फलक के चाँद से,
या तेरी याद से
जिऊँ किसके सहारे,
ऐसे हालात से,
मोड़ जो आ गए
बनके मेरे दूरियां
कैसे किससे कहें
अपनी मजबूरियां
जो तेरे इश्क में,
खोया हूँ हर घड़ी
तू क्या जाने सनम..
साँसें बैचेन पड़ी..
वो मुलाकात से
या दिन और रात से
जिऊँ किसके सहारे,
ऐसे हालात से,…
कसर छोड़े नहीं,
मेरे दिल में कहीं
घोल दी इश्क ये,
बन के ज़हर कहीं
– मनोज कुमार यकता

सच के आगे झूठ लिखूँ ये मेरा काम नहीं
October 20, 2025 in हिन्दी-उर्दू कविता
सच के आगे झूठ लिखूँ
ये मेरा काम नहीं
इश्क है मेरा दौलत शोहरत,
भले इश्क बदनाम सही
घायल लोग यहाँ रहते हैं
दिल सीने में किसके है?
बैचेन पड़ी है रात यहाँ
तारे भी दूर रहते हैं
पूछो रंग भरे जमाने से
कितनी दुवायें करते हैं
इक लम्हा चाहत के लिए
चैन की नींद न सोते हैं
उसकी चौखट दीये सन्नाटे
कब मुश्किल दे जाए
जब ख़बर हो हवा को
यूँ ही आँसू बहाए
-मनोज कुमार यकता
कभी बन्द कमरे भी छोड़
October 16, 2025 in हिन्दी-उर्दू कविता
कभी बन्द कमरे भी छोड़
कुछ और भी है इसके आगे
क्यूँ तू वक्त खपा रहा फिजूल में,
कोई और भी देता है जवाब
निकल तू भी देख ख्वाब..
बीतती है कैसे शाम की उलझन
हथेली पे कैसे होते टिफिन के ढक्कन
एक मुसाफिर आता है, एक मुसाफिर जाता है
पर रोज सामने से गुजरता है
दुनिया की हर तस्वीरों से मंहगी है ये,
जो कभी पराए भी मिला करते हैं।
पांव जलते हैं पत्थरों से
तब जागे आवाज आती हैं सीने स
भाग रे तू कमाने परदेस,
छोड़ पराया अपना देस
झाँकती रहतीं हैं माँ खिड़कियों से,
सोचती बच्चा फिर सम्भलेगा कैसे
निकल तो रहा है घर से,
पर कलेजा कैसे हो ठंडक इन मोह से,
आसान नहीं है घर की थाली छोड़ना
आसान नहीं है वो बिस्तर छोड़ना
माँ को चुप करना,
बीबी से वादा करना..
कभी बन्द कमरे भी छोड़
कुछ और भी है इसके आगे…
-मनोज कुमार यकता

हम भूल भी नहीं सकते वो बाते।
August 21, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
भंवरा अंधेरा छोड़ा है, लेकिन वो परछाई नहीं।
पागल बना है दर दर भटकने से, लेकिन हरजाई नहीं।