by Navnita

बुरा ना मानो होली है!

March 17, 2022 in Poetry on Picture Contest

बुरा ना मानो होली है!
जोगीरा सा रा रा,
होली आई, होली आई.
बीत गयी बसंत, लौटी है फिर से फागुन के होली की उमंग.
भांग पीकर सब ऐसे मस्त पडे़ है,
जैसे दुनिया के सारे रंजोगम से बेखबर लग रहे है.
बच्चों की टोली आई,
रंगों के साथ खुशियाँ लाई.
कि
कई मीठे पकवान बने हैं,
बड़े तो बड़े दादाजी भी झूम रहे हैं .
याद आ गई बचपन की वो बातें,
पिचकारी में भरके रंगों को दूसरों पर उड़ेलना .
और दूसरों का

by Navnita

धरती माता

April 26, 2021 in Poetry on Picture Contest

धरती माता ! धरती माता !
करूँ माँ कैसे मैं तेरा गुणगान,
आज तो निकली जा रही है सबके प्राण |
आज हर शै की रौनक जा चुकी है ,
चारो तरफ उदासी छा चुकी है |
कल तक चारो तरफ हरियाली ही हरियाली छाई थी |
देखकर ऐसी खुशहाली धरती माता की खुशी से आँखे भर आई थी |
पर आज का मंजर ही कुछ और है |
कल तक बात कुछ और था ,और आज का दौर ही कुछ और है |
आज सांसो में अजीब- सी घुटन है ,
ना जाने कोरोना वायरस जैसी तबाही का कौन सा ये चलन है |
पहले स्वच्छ हवा जीवन में रंग भरा करती थी ,
पर आज वहीं हवा प्रदूषित होकर जान लिया करती है |
आज लाशों की ढ़ेर लगी है,
कहीं बेटे, तो कहीं माएँ रो पड़ी है |
मैं पूछती हूँ कहाँ गयी तेरी रंग-बिरंगी खुश्बू से भरी हरियाली,
किसने छीन ली तुझसे तेरी खुशहाली |
धरती माता ! आज मैं करूँ तेरा क्या बखान,
पेड़ कट रहे है, बन रहें है फैक्टरी और मकान|
चिमनिंयों से निकलते धुएँ अब पूरी धरती को प्रदूषित करने की वजह बने है ,
कितनों के हाथ अब खून से सने है |
आओ! हर कोई पेड़ लगाने का प्रण ले,
जीव-जन्तु और वन्य प्राणियों को एक नया जीवन दे |
प्रकृति की विकृति जैसे सुनामी ,बाढ़ और प्रदूषित वातावरण बिगाड़ रही है अच्छी-खासी स्थिति,
जीवन अब शून्य हो रहे है,
पाप भी अब पूण्य हो रहे है |
आओ ! धरती माता को आज बचाएँ,
इसके लिए अपने हाथों से सभी एक पेड़ लगाएँ|
फिर से धरती माता को स्वच्छ व निर्मल बनाएँ |
एे! कोरोना वायरस का कहर तुझे अब जाना होगा ,
सबको मिलकर इस डर को हर किसी के अंदर से भगाना होगा |
ये पावनभूमि संत-महात्माओं का जन्मस्थल है
गंगा जैसी पवित्र नदी की बहती यहाँ शीलत जल है |
आज हॉस्पिटलो में ऑक्सीजन की कमी हो रही है ,
पर वहीं ऑक्सीजन देने वाले पेड़ों को काटने में कुछ लोगो की आँखो में नही है |
आज शुद्ध हवा के लिए मानव तड़प रहा है ,
जैसे उससे उसका संसार बिछड़ रहा है |
धरती माता !आज मैं करूँ मैं आपका क्या बखान,
जबकि सारी धरा ही बन रही हैआज शमशान |
तेरे बखान के लिए शब्द हलक से उतर नही रहें ,
तबाही का है आज एेसा मंजर कि जनजीवन सुधर नहीं रहे है |
कोई तो इस धरा की रौनक लौटा दो,
हर शै को फिर से महका दो |
इस धरा को मरूभूमि बनने से बचा लो |
अब कहाँ रहा नीला अंबर खुला आसमान,
तड़प-तड़प कर दम तोड़ रही है तेरी संतान |
धरती माता! धरती माता !
तेरा अब करूँ मैं क्या बखान ,
मुझको अब कुछ समझ नहीं आता |

by Navnita

ये तो वही किसान है

February 13, 2021 in Poetry on Picture Contest

चिड़ियों के चहचहाने से पहले,
बैलो के रंभाने से पहले जो जाग जाता है,
ये तो वही मेहनत का पुजारी किसान है|
अन्न को उपजाने में जिसकी दिन-रात बहती लहू और जिसकी लगती जान है,
ये तो वही किसान है |

अन्नदाता ही अन्न को आज मोहताज है,
जिसके भरोसे कितनों के चुल्हों में आग सुलगते है,
और जिसके कारण आज दंभ भरते बड़े साहूकार है ,
ये तो वही मेहनतकस किसान हैं|

कर्ज,तकलीफ और बेरोजगारी ही आज किसान की किस्मत बनी है,
घुट-घुट कर जी रहे किसानों की अब हिम्मत भी टूटने लगी है |
अब आत्महत्या करना ही उनकें बस की बात रहीं है,
ना जाने कब किसानों की तरक्की होगी,
उनके बच्चों की बुनियादी जरूरतें पूरी होगी |
ना जाने कब किसानों के चेहरे पर मुस्कान होगी,
ना जाने कब किसानो की किस्मत धनवान होगी |
मेहनत ही जिसका ईमान है,
ये तो वही किसान है |

सरकारें बनती और गिरती है,
पर किसानों की तकदीर कहाँ संवरती है |
कर्ज में डूबा किसान अपनी किस्मत बदलने के लिए आंदोलन कर रहा है,
अपने हक के लिए सड़को पर ठंड मे मर रहा है |
परेशानी जिसके हाथों की लकीरें बनी है,
ये तो वही मेहनत करने वाला किसान है |

हाथ जोड़े जिसका सर झुका है,
उम्मीद भरी आँखो से जो रोटी को देख रहा है,
जिसके लिए सरकार की भी बदल गई ईमान है,
ये तो वही कर्म को ही पूजा समझने वाला किसान है |
किसान गर आंदोलन कर रहा है,तो क्या बुरा कर रहा है ,
वो बस अपनी पसीने की कमाई के लिए दिन-रात लड़ रहा है ,
पर उसकी किस्मत कहाँ बदल रहा है |
सोचो गर किसान ना होते तो हमारा क्या होता,
तो हलक के नीचे इतनी स्वादिष्ट एक निवाला भी नही होता है |
फिर भी समझ नही आता कि हम किसानों की सता को क्यूँ नकारते है ,
हमारे खेतों में हरियाली भूमिपुत्र किसान भाई से है, ये बात हम क्यूँ नहीं स्वीकारते है |

आज फिर से ‘जय जवान,जय किसान का नारा
लगाना होगा,
किसानों का सस्ममान वजूद लौटाना होगा |
किसान भाई! टैक्टर रैली कोई सामाधान नही है ,
मिटा दे कोई आपका वजूद बना आजतक कोई
संविधान नहीं है |
किसान भाईयों को ये समझाना होगा कि वे आंदोलन ना करे,
अपने आपको बदनाम ना करे |
अब वो समय आ गया है जब आपकी भी किस्मत चमकेगी |
गांवो में दूध की नदियाँ तथा खेतों में हरियाली
बिखरेगीं |
ये तो वही किसान है जिसकी कभी बिकती नही ईमान है |

by Navnita

अलविदा 2020 नववर्ष की चाहत में

January 1, 2021 in Poetry on Picture Contest

नववर्ष आया है, झूमो, नामों सब खुशियाँ मनाओ,
दहशत भरी 2020 की यादें को अब अलविदा कह जाओ |
नई उमंगे, नई उम्मीदों के साथ अपना पग खुशहाली की ओर बढ़ाओ |
बुरे वक्त में भी साथ निभाने का आओं अब ये कसम खाए,
बुरा वक्त अब तुमको जाना होगा, खुशियाँ अब तुमको आना होगा |
बुरे वक्त में हम इतना संयम दिखाई,
कोरोनाकाल के सभी सहयोगी के सहादतों को तो हम भूलकर भी हम भूला ना पाएँगे |
पर इस नववर्ष में उम्मीदों के किरण जगाएँगे |
आनेवाले हर मुसीबतो का सामना हम हँसते- हँसते कर जाएँगे ,
डॉक्टर, जाबांज सिपाही और कोरोनाकाल के सभी सहयोगी का हम तहेदिल से करे सम्मान,|
जिसने अपनी जान जोखिम में डालकर कितनों
की बचाई हैं जान,
नववर्ष की तहेदिल से हैं सबको शुभकामना,
साथ निभाए सबका, पूरा करे हर कर्तव्य अपना |
अलविदा 2020 नववर्ष की चाहत में,
सबको सुकून भरी ज़िन्दगी मिलें और हर दर्द से मिले सबको राहत ||

by Navnita

अलविदा 2020नववर्ष की चाहत में

January 1, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

नववर्ष आया है झूमो नाचो सब खुशियाँ मनाओ,
दहशत भरी 2020 की यादों को अब अलविदा कह जाओ |
नई उमंगे, नई उम्मीदों के साथ अपना पग खुशहाली की ओर बढ़ाओ,
बुरे वक्त में भी साथ निभाने का आओ अब ये कसम खाए |
बुरे वक्त अब तुमको जाना होगा, खुशियाँ अब तुमको अाना होगा,
बुरे वक्त में हम इतना संयम दिखाए |
कोरोना काल के सभी के सहादतों को तो हम भूलकर भी हम भूला ना पाएगें |
पर इस नववर्ष में उम्मीदों के किरण जगाएगें
आने वाले हर मुसीबतों का सामना हम हँसते- हँसते कर जाएंगे |
डॉक्टर ,जाबांज सिपाही और कोरोनाकाल के सभी सहयोगी का हम तहेदिल से करे सम्मान,
जिसनें अपनी जान जोखिम में डालकर कितनो की बचाई हैं जान |
नववर्ष की तहेदिल से हैं सबको शुभकामना,
साथ निभाए सबका, पूरा करे हर कर्तव्य अपना |
अलविदा 2020 नववर्ष की चाहत में,
सबको सुकून भरी ज़िन्दगी मिलें, और हर दर्द से मिले सबको राहत| |

by Navnita

तोहफा वो अनमोल था

October 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तोहफा वो अनमोल था

आज शुकून भी मिल जाता,काश कोई झूठा ही सही पर कोई हमदर्द ही निकल जाता |
इसी चिंता से मेरा मन विकल था,पर उसकी आँखो में इतिहास ना कोई सरल था |
पर उसका होना ही मेरे वजूद का परितय था,
पर ये मेरे दर्द पर मेरा पहला विजय था |
कुछ ही पल मे दूर हो चला सारा शिकवा -गिला था |
ऐसा प्यार भरा तोहफा मुझे पहली बार मिला था |
तोहफा पाकर मै प्रसन्न थी,ना जाने कौन -सी जीती मैने जंग थी |
पर इतना मुझे समझ आ गया था और चारो ओर खुशियाँ ही खुशियाँ छा गया था |
पर मेरी माँ को मेरा तोहफा पाकर इठलाना भा गया था |
तोहफा वो अनमोल था,वक्त के कालचक्र का अजब रोल था |
तोहफा वो अनमोल था |तोहफा वो अनमोल था ||

प्रमाणपत्र

प्रमाणित किया जाता है कि संलग्न कविता जिसका शीर्षक (तोहफा वो अनमोल था ) है, मौलिक व अप्रकाशित है तथा इसे “सावन काव्य प्रतियोगिता 2020) मे सम्मिलित करने हेतु प्रेषित किया जा रहा है और इसे “saavan Refining poetry ” की तमाम शर्ते मान्य है |

Address

Navanita kumari(dentist)
Village +post -chuhari
District-west.champaran
Thana -chanpatiya
State-bihar
Pin-code-845450
Mobile number-9304421634

by Navnita

विजयादशमी हम मनाते है

October 22, 2020 in Poetry on Picture Contest

विजयादशमी हम मनाते है पर अपने अंदर के रावण को कहाँ जलाते है ?
कटाक्ष कर रही है भगवान श्री राम की सच्चाई और निष्ठा ,रावण जैसे दुराचारी के क्रोध,कपट,कटुता,कलह,चुगली ,अत्याचार |
दगा,द्वेष,अन्याय,छल रावण का बना परिवार ,
आज कहाँ मिलते है माता सीता जैसे निश्छल विचार |
वर्तमान का दशानन,यानी दुराचार भ्रष्टाचार ,
आओ आज दशहरा पर करे,हम इसका संहार |
कागज के रावण मत फूँको, जिंदा रावण बहुत पड़े है,
अहंकार,आज इंसान की इंसानियत से भी बड़े है |
आज झूठ भी बड़े गर्व से अपने हुकूमत पे अड़े है|
आज भी सीता रावण की नजरो मे उसकी जागीर बनी है,
सीता की पवित्रता की ना जाने कितनी तस्वीर जली है|
विजयादशमी हम मनाते है पर अपने अंदर के रावण को कहाँ जलाते है ||

धरतीमाता आज भी रो पड़ी है ,अपनी सीता की ये हालत देखकर,
पर विधाता की कलम भी ना डगमगाई, सीता की ऐसी तकदीर लिखकर |
आज कहाँ राम सीता को बचाते है ,
आज तो राम ही सीता की पवित्रता पर प्रश्नचिन्ह लगाते है |
मृगतृष्णा में ना जाने कितने बहके पड़े है,
राम के जैसे सद् विचारो से मीलो दूर खड़े है |
आज ना राम जैसा पुत्र जन्मा है,ना राजा दशरथ जैसा पिता |
ना आज रावण की नजरें रहने देती गीता जैसी पवित्र सीता |
विजयादशमी आज भी हम मनाते है,पर अपने अंदर के रावण को कहाँ जलाते है ||

नवनीता कुमारी (डेंटिस्ट)
ग्राम+पोस्ट -चुहड़ी
शहर-बेतिया
जिला-पश्चिम चंपारण
राज्य-बिहार
थाना-चनपटिया
पिन -कोड-845450
मोबाईल नंबर -9304421634

प्रमाणपत्र

प्रमाणित किया जाता है कि संलग्न कविता जिसका शीर्षक “विजयादशमी हम मनाते है”है मौलिक वअप्रकाशित है तथा इसे “saavan Redefining poetry “2020 मे सम्मिलित करने हेतु प्रेषित किया जा रहा है और मुझे सावन कविता प्रतियोगिता 2020 पिक्चर पर कविता ) की तमाम शर्ते मान्य है |

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