फूलों से कह दो चमन में

November 21, 2015 in ग़ज़ल

फूलों से कह दो चमन में अब न यूँ महका करें ।
खौफ से कांटों के अब सब काँटों का सिजदा करें ।

चाँद किस से जाके अपनी दास्ताँ ए दिल कहे ,
जब उजालों के ही आशिक चांदनी रुसवा करें ।

प्यार देने वाले भी तो खा रहे धोखे यहाँ ,
आदमी की जात का अब हम “भरोसा” क्या करें ।

अपने दिल की रहगुज़र पर जो अकेले ही चले ,
क्यूँ जमाने वाले उनके प्यार पर पहरा करें ।

इतना ही काफी है “नीरज” दिल के रिश्तों के लिए,
तुम हमें समझा करो और हम तुम्हे समझा करें ।

नीरज मिश्रा

पर्व सबका ये दीपावली का रहे

November 12, 2015 in ग़ज़ल

घर अँधेरे में अब ना किसी का रहे ।
चार सू रंग यूँ रौशनी का रहे ।

जगमगायें यहाँ सब महल झोपड़ी
पर्व सबका ये दीपावली का रहे ।

 

घर ,मुहल्ले ,शहर खिल उठें प्यार से ,
हर तरफ सिलसिला दोस्ती का रहे ।

आओ दें एक दूजे को शुभकामना ,
दौर सबके लिए उन्नती का रहे ।

ऐसी दीवाली हो अब दुआ कीजिये ,
सबके दिल में तसव्वुर ख़ुशी का रहे ।

नीरज मिश्रा

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