by Neha

नारीत्व

November 2, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

अपने कलेजे से लगाकर सदा रखती मुझे,
हर बुरी नज़र से बचाकर लाड करती मुझे,
माँ बापू के बगिया की एक सुंदर कली मैं,
तो पलभर में क्यूं रौंद डाला दरिंदो ने मुझे।।

एक लड़की हूं एक नारी हूं एक औरत हूं, पर
क्यूं बार बार घसीटा जाएगा खंडहर में मुझे,
एक इंसान हूं मैं भी जीने की अधिकारी भी,
हृदय स्पंदनों की ध्वनि से मैं भी जीती हूं पर;
हर बार क्यूं निर्दोष बेमौत मारी जाती है मुझे।।

समाज को नारीत्व की क़दर नही या ख़बर नही,
आखिर हर बार क्यूं मार दिया जाता है मुझे,
धरती सहज नही या समाज अनुकूल नही,
हर बार क्यूं जान देकर इम्तेहान देना पड़ता है मुझे।।

स्वरचित मौलिक रचना
नेहा यादव

by Neha

हिसाब

November 2, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

इससे बत्तर हयात में और क्या होगा,
ख़्वाबों का कारवां पल में ख़ाक होगा,
देखकर मंजर कुछ अजीब लम्हों का,
जज्बातों का मेहर पल में राख होगा।।

हर फरेब का चेहरा अब बेनकाब होगा,
सच से रूबरू हो; हटा सर से नकाब होगा,
पर्दा लगाकर कब तक छुपते रहोगे साहब!
अब तो हर जुर्म का हिस्से में हिसाब होगा।

मर्यादाओं से ओझिल बेबुनियादी आगाज होगा,
कभी ना समझी उस साजिश का इंतकाम होगा,
भूल गए हम भी ताख पर रखे खतो का हिसाब,
जो कभी ना हुआ वो सब कुछ बेहिसाब होगा।।

स्वरचित रचना
नेहा यादव

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