उतरते साहिल पर शाम का सूरज

November 24, 2019 in ग़ज़ल

उतरते साहिल पर शाम का सूरज जवां है
हाथ छूट गए लेकिन यादें रवां है

इतनी फुरसत कहाँ की लौट कर आयें
खैर मसाफ़त से इश्क़ का तजुर्बा बढ़ा है

मेरे बहकते कदमों में शराब नही शामिल
अंजाम रब्त का सर पर चढ़ा है

कोई इन्तिजाम ही नही तुम्हे भुलाने का
जो चेहरा देखा करूं तू ही तू रवां है