Poonam
MUSAFIR
June 17, 2023 in हिन्दी-उर्दू कविता
गरीब था मुसाफिर
पर अनजान नहीं था
भूख थी पेट में
पर सहता गया
भटकता भटकता वहाँ गया
जहाँ मुसाफिर को मुसाफिर मिले
पर वहाँ भी अंतर हुआ
कि कौन कितना नया
और कौन कितना पुराना हुआ
पर दोनो को जोड़ा एक डोर ने
दोनों की जेबें खाली
और दोनों ही फूटी किस्मत के मारे
मुसाफिर को मंज़िल नहीं पता थी
चलता गया…चलता गया…
पैरों को आराम ना दिया
आँखों को विराम ना दिया
गरीब था मुसाफिर
पर इस बार
खाली हाथ ना गया
आखिर में ढूंढी वो मंज़िल
जहाँ ठुकराया गया
वहाँ वापिस ना गया