MUSAFIR

गरीब था मुसाफिर
पर अनजान नहीं था
भूख थी पेट में
पर सहता गया
भटकता भटकता वहाँ गया
जहाँ मुसाफिर को मुसाफिर मिले
पर वहाँ भी अंतर हुआ
कि कौन कितना नया
और कौन कितना पुराना हुआ
पर दोनो को जोड़ा एक डोर ने
दोनों की जेबें खाली
और दोनों ही फूटी किस्मत के मारे
मुसाफिर को मंज़िल नहीं पता थी
चलता गया…चलता गया…
पैरों को आराम ना दिया
आँखों को विराम ना दिया
गरीब था मुसाफिर
पर इस बार
खाली हाथ ना गया
आखिर में ढूंढी वो मंज़िल
जहाँ ठुकराया गया
वहाँ वापिस ना गया

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