कारगिल विजय दिवस की याद में

July 27, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

कारगिल विजय दिवस 26 जुलाई 2016 की वर्षगाँठ पर मन के कुछ भाव,…..

हुआ देश आजाद तभी से , कश्मीर हमारे संग आया।
विभाजन से उपजे पाक को, उसका कृत्य नहीं भाया।

रंग बिरंगी घाटी कब से,पाक कि नज़र समाई थी।
कश्मीर को नापाक करने, कसम उसी ने खाई थी।

वादी पाने की चाहत में, सैंतालीस से जतन किया।
तीन युद्ध में मुंह की खाई, फिर से वही प्रयास किया।

बार बार वह मुँह की खाये, उसको शर्म न आनी थी।
छल प्रपंच करने की फितरत, उसकी बड़ी पुरानी थी।

दारा करे सीधे लड़ने में, अपनी किस्मत कोसा था।
आतंकी के भेष में उसने, भष्मासुर को पोषा था।

हूर और जन्नत पाने को, आतंकी बन आते थे।
भारत की सेना के हाथों, काल ग्रास बन जाते थे।

जन्नत को दोज़ख बनने में, कोई कसर न छोड़ी थी।
मासूमों को हथियार थमा, बिषम बेल इक बोई थी।

तभी शांति की अभिलाषा ले, अटल कि बारी आई थी।
जाकर जब लाहौर उन्होंने, सद इच्छा दिखलाई थी।

भाईचारे की मिसाल दे, छद्म युद्ध को रोका था।
पाकिस्तानी सेना ने फिर , पीठ में छुरा भोंका था।

सन निन्यानबे मई माह, फिर से धावा बोला था।
चढ़ कर करगिल की चोटी पर, नया मोरचा खोला था।

भारत की जाबांजो ने तब, उस पर कठिन प्रहार किया।
बैठे गीदड़ भेड़ खाल में, उनका तब संहार किया।

एक से एक दुर्गम चोटी को, वापस छीन के’ लाए थे।
देश कि खातिर माताओं ने, अपने लाल गंवाए थे।

तीन महीने चले युद्ध में,फिर से मुंह की खाई थी।
मिस एडवेंचर के चक्कर में, जग में हुई हंसाई थी।

आज मनाकर विजय दिवस हम, उसको याद करायेंगे।
ऐसी गलती फिर मत करना, नानी याद दिलायेंगे।

प्रवीण त्रिपाठी
26 जुलाई 2016