शायद मुल्य अधिक वो पायेगा

June 22, 2023 in हिन्दी-उर्दू कविता

शायद मुल्य अधिक वो पायेगा।

रिमझिम बारिश की ये बूंदे, मेघा उपर से फेक रहा
एक टक लगाए वो सबकुछ शांति से है देख रहा
बारिश की बूंदे पड़ी भूमि पे, उसने हाथों को चूमा
बांह फैलायी,सिर को उठाया,चारो दिशाओं में घूमा।

इस बार फसल तो अच्छी होगी,जोर जोर से बोल पड़ा
बारिश की बूंदों के संग,उसका तन मन भी डोल पड़ा
कुछ दिनों के इंतजार में, हुई फसल उसकी हरी भरी
नारंगी रंग की तप्त धूप से लहलहा कर फसल हुई खड़ी

निकाली दरांती, पत्नी से बोला घर देर से आऊंगा मैं
खाने की पोटली ले गया हूं,आज खेत में खाऊंगा मैं
खेत पहुंचकर, थोड़ा सोचकर, फसलों को वो काटने लगा
थक जाने पर सांस ले लम्बी, कटीं फसलों को ताकने लगा

तेज दरांती चला चला के लगभग, आधे खेत वो बढ़ गया
निकाला गमछा, पोंछ पसीना,अब दिन भी सिर पे चढ़ गया
तो बैठा पेड़ की छांव में , और अपने खेत देख‌ वो सुस्ताया
खोली पोटली,जल को छिड़का,निवाला ईश्वर को पहले लगाया

फिर चबाने लगा वो सूखी रोटी, गुड़ के साथ बड़े चाव से
दुनिया का सबसे अच्छा खाना, ऐसे लग रहा उसके भाव से
पोटली बांधी ,जल पिया, और थोड़ा सा विश्राम किया
उठ पड़ा कुछ क्षण के बाद, फिर बैलों जैसा काम किया

श्याम हुई घर को पहुंचा ,मुंह धोके गमछे से पोंछने लगा
खटिया में बैठा आराम से बड़े ध्यान से कुछ सोचने लगा
बेटी को जूते,बेटे को कपड़े , इस बार जरूर दिलाएगा
फसल अच्छी इस बार होगी, शायद मुल्य अधिक वो पायेगा
शायद मुल्य अधिक वो पायेगा।

आशीष।

गुड़िया बेचते बेचते

June 22, 2023 in Poetry on Picture Contest

आज कुछ लिखने का मन किया ,इस मंजर को देखते
एक गुड़िया खुद ही सो गयी, गुड़िया बेचते बेचते
सुबह से भूखी प्यासी, बाजार में है खड़ी खड़ी
हाथों में एक लम्बे डंडे पर बांधी है खिलौनों की लड़ी

शिक्षा से कितनी दूर है वो,पर क्या करे मजबूर है वो
शायद उसको ही घर चलाना जिम्मेदारियों से भरपूर है वो
एक नूर कहीं खो गया, स्कूल के बच्चों को देखते देखते
एक गुड़िया खुद ही सो गयी, गुड़िया बेचते बेचते

जब पेट में उसके अनाज हो तब तो शिक्षा की बात हो
रात हुई,बाजार बंद हुआ सब जाने लगे अपने आवास को
अकेली कहीं दुकानों के किनारे पर गयी झेंपते झेंपते
एक गुड़िया खुद ही सो गयी गुड़िया बेचते बेचते

कोई खास नहीं साथ नहीं,पास नहीं अपना कहने को
और छोड़ो कम से कम ,भगवान एक घर तो देते रहने को
वो बैठ गयी कोने पर जहां उसे सुरक्षा का आभास हुआ
फिर गिनने लगी उन पैसों को कि देखे कितना लाभ हुआ

दुआ मांगती ईश्वर से,कि कोई और ये दिन ना देखे
ईश्वर का आशीष बने रहे, पढ़ें गरीबों के बेटी-बेटे
रात गहरी होने लगी,वो अकेली ठंड को सहते सहते
वो गुड़िया खुद ही सो गयी, गुड़िया बेचते बेचते(

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