Ritu Soni
तकनीकी की लय
June 28, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
तकनीकी की लय में रिश्ते अब ढल रहें हैं ,
पीर की नीर हो अधीर जल धारा बन बह रही है,
मन्तव्य क्या, गन्तव्य क्या,
भावनाओ की तरंगे सागर की लहरो सी, विक्षिप्त क्रंदन कर रही हैं।
तकनीकी की प्रवाह में संवेदनाएं ढल रहीं है,
मौन प्रकृति के मन को जो टटोल सकें वो मानस कहाँ बन रहें हैं,
आधुनिकता की होड़ में नव कल से मानव ढल रहे हैं,
शुष्क मन संवेदनहीन जन कल से यूँँ हीं चल रहें हैं,
तकनीकी के लय में कल से जीवन ढल रहें हैं।