by Sampat

इंसानियत

January 4, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

नहीं बन सके महान धरा पर, इंसानियत का बने सहारा,

जग रूठे पर रब ना रूठे, ऐसा हो सेवा भाव हमारा।
दीन हिन् बिखरता वैभव, कुंठित हुई भावनाये ऐसे,
शव समान रिश्ते ऐठे है, मन मुरझाया सूखे पत्तो जैसे।

द्रवित बेबस घूमती मानवता से, शब्द सभी निशब्द हो गये,
दुःखित हुआ दिल, मचल उठा मन, परिवर्तन हित कुछ करने को।
उठो साथियो ले मशाल अब, अटल संकल्प से नव निर्माण हित पैर धरो,
भला ना कर सके यदि किसी का, बुरा किसी का अब ना करे।
प्रभु ऐसा आशीष दिलाओ, भूखा नंगा ना कोई सो पाये,
दुःख पीड़ा दारिद्र् हरो सब, हर घर आँगन
खुशियां छा जाये।
ना आने दे कलुषित विचार, छोड़े दम्भ और झूठा अहंकार,
ये तेरा ये मेरा और कौन पराया, सब से रखे उत्तम व्यवहार।
नये साल में नयी उमंगें, नये विचार संग साथ रखे,
सब के जीवन में खुशियों के, रंग कई हज़ार भरे।
एक एक जुड़ते जुड़ते हम, कौटि रत्न माला बन जाये,
भारत माँ का मान बढ़ाने, हम सब मिल कर कदम मिलाये।
स्वरचित – सम्पत नागौरी “सौरभ”

by Sampat

आओ नव वर्ष मनायें

January 1, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आओ नव वर्ष मनायें, झिलमिल झगमग देश बनाये,
कृतिम रौशनी की आभा से हट, शास्वत जिवंत दीप जलाये।
नव वर्ष आज सिर्फ शब्दों से नहीं, श्रद्धा भावना से मनाये,
सूर्य सा ज्योतिर्मय हो मेरा देश, हर मन राधा कृष्ण बनजाये।
धन कुबेर की सम्पन्नता सा, भरापूरा रहे हर घर परिवार,
निरोगी रहे हर तन मन और, अमृत से भरा रहे दिलों में प्यार।
हर वर्ष नव वर्ष मनाते, नव वर्ष पर, कुछ भी बदल नहीं पाते,
रटा रटाया एक ढरे सा, हर वर्ष ये अनुपम मीठा पर्व मनाते।
इस वर्ष से बदल के रख दे, सम्बन्धो के कई पैमाने,
ले संकल्प दीनदुखी हित, सबके जीवन में भर दे उजियारे।
एक सूर्य जब अपने दम पर, हर लेता अन्धकार जगत का,
हम सब मिलकर क्यों ना करले, सवर्ग से सुन्दर आँगन घर का।
नववर्ष की दुआऐं शुभ मंगल कामनाऐ तो सभी देते है
जेसे किताबो में रखे फूल खुशबू कम और ख्वाब बेसुमार देते है।
कुछ ऐसा करे फुलो में खुशबू और ख्वाब हकीकत में ढल जाये
खुश रहे सारा जंहा मेरा वतन सुख समृद्धि शक्ति से विश्वगुरु बन जाये।
बल बुद्धि विद्या अमन चैन संग सब मिल
प्रगतिपथ पर रहे अग्रसर
सूंदर सुरभित श्रेष्ठ बने हम अपने दम पर सब मिलजुल कर।
स्वरचित – सम्पत नागौरी “सौरभ

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