टूटती जिंदगी

April 9, 2018 in ग़ज़ल

हमने चाहतों को सजाना छोड़ दिया
तेरे जाते ही जमाना छोड़ दिया

क्यों हम टूटते ही चले जा रहे हैं
लगता है उसने बनाना छोड़ दिया

नींद भी हमें अब कम आती है
ख्वाबों ने भी तो आना छोड़ दिया

डर लगता है अब बिखरने से हमें
नजरों से नजरें मिलाना छोड़ दिया

सफर में एक साथी कुछ देर का
उसने भी साथ निभाना छोड़ दिया

हर खुशी में एक गम छुपा दिखता है
सो हमने खुशी को पाना छोड़ दिया

लोग आते हैं और चले जाते हैं
हमने दिल को समझाना छोड़ दिया

अब गिरना वाजिब लगता है शिव
इसलिए संभल जाना छोड़ दिया

शिव उपाध्याय