हँसो

January 7, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

हँसो, के मैं जहाँ जा रहा, वहां तुम्हारी सोच भी नहीं जाती |
हँसो, के मेरी आँखें जो सपने संजोए हैं, तुम्हारी देख भी नहीं पाती |
हँसो, तुम हँसो |
हँसो, के तुम्हारे यार कई हैं मगर अकेला खड़ा हू मैं |
हँसो, के तुम बहे जा रहे लहरों में मग़र उनसे लड़ा हूं मैं |
हँसो, तुम हँसो |
हँसो, के तुम्हें कोई गम नहीं और कितना रोता रहा हूं मैं |
हँसो, के तुम कभी उठे ही नहीं और गिर गिर कर खड़ा होता रहा हूं मैं |
हँसो, तुम हँसो |
हँसो, के तुम ज़िन्दगी काटने मे लगे हो और मैं बनाने मे |
हँसो, के तुम गुमनाम ही रहोगे और सब जानेंगे मुझे इस ज़माने में |
हँसो, तुम हँसो |