दहेज

March 19, 2017 in Poetry on Picture Contest

मेरे माथे को सिंदूर देके
मेरे विचारों को समेट दिया
मेरे गले को हार से सजाया
पर मेरी आवाज़ को बांध दिया
मेरे हाथों मे चूड़ियों का बोझ डालके
उन्हें भी अपना दास बना दिया
मैं फिर भी खुश थी
मुझे अपाहिज किया पर थाम लिया
मेरे पैैरों में पायल पहनाई और
मेरे कदमों को थमा दिया
मैं फिर भी खुश थी
कि मेरा संसार एक कमरे में ला दिया
पर आज मुझे
मेरा और मैं शब्द नहीं मिल रहे
शायद वो भी दहेज में चले गये…