हवा के नर्म परों पर सलाम लिखती हूँ

December 29, 2016 in ग़ज़ल

हवा के नर्म परों पर सलाम लिखती हूँ
गुलों की स्याही से जब जब पयाम लिखती हूँ

बड़ा सहेज के रखती हूँ तेरे खत सारे
जो सुब्हो शाम मैं तेरे ही नाम लिखती हूँ

जिसे मैं दुनिया के डर से न कह सकी अब तक
वही फसाने ख़तों में तमाम लिखती हूँ

ज़ुनूने इश्क में तेरे मैं खो चुकी इतनी
जो बेखुदी में सवेरे को शाम लिखती हूँ

नहीं की मयकशी ता उम्र ,रिंद हूँ फिर भी
इसलिए तेरी आँखों को जाम लिखती हूँ

मिरे करीब से जिस वक्त तुम गुज़रते हो
तुम्हारी चाल को मस्ते खिराम लिखती हूँ

कलम की नोक पे आता है नाम ही तेरा
मैं जब भी कोई अछूता कलाम लिखती हूँ

दूर रह कर कभी दूर नहीं रहता है

December 29, 2016 in ग़ज़ल

दूर रह कर कभी दूर नहीं रहता है
मेरी चाहत है सदा दिल के मकीं रहता है

देखिए दिल और नज़र में है ताअल्लुक कैसा
चोट लगती है कहीं दर्द कहीं रहता है

बामो दर छूले अगर दिल के मोहब्बत आकर
ज़िदगानी में वही लम्हा हसीं रहता है

सोच कर फैसले करता तो संभल सकता था
बेवफाई पे मोहब्बत का यकीं रहता है

जिसने गुलज़ार किया है मेरी वीरानी को
बन के तक़दीर वही दिल में मकीं रहता है

घेर लेती हैं जहाँ बंदिशे दुनिया मुझको
ज़ज्बा ए वस्ल मिरा सोग नशीं रहता है

मुब्तिला रहता है शैदाई सा मन ख्वाबों मे
इश्क में वक्त का एहसास नहीं रहता है

तुम जो आओ ख्वाब में तो राब्ता रह जाएगा

September 27, 2016 in ग़ज़ल

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तुम जो आओ ख्वाब में तो राब्ता रह जाएगा
इक दिया उम्मीद का दिल में जला रह जाएगा

पूछ लो तुम हाल मेरा बस दिखावे के लिए
के भरम दिल में मुहब्बत का ज़रा रह जाएगा

दूर होकर ज़िंदगी भी है पशेमाँ सी मेरी
तेरे बिन ज्यूँ रूह से पैकर जुदा रह जाएगा

हम गुज़र जाएंगे इक दिन इस जहां ए फानी से
छूट जाएगा यहीं सब तज़किरा रह जाएगा

उम्र के हाथों बदल जाएंगे सबके चेहरे भी
वह पुराना अक्स फिर तू ढूँढता रह जाएगा

वार दिल पर इस जुबां का देखो होता है बुरा
ज़ख्म तो भर जाएगा पर आबला रह जाएगा

आँधियों की ज़द में हैं कुछ टिमटिमाते से दिये
जिस दिये में जान होगी वह दिया रह जाएगा

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गीत गाती रही रात भर

August 14, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

गीत बुलबुल सुनाती रही रात भर
दिल में अरमां जगाती रही रात भर

वादे गिनते रहे तेरे तारों के संग
चाँदनी दिल जलाती रही रात भर

ज़द पे किसने हवाओं की छोड़ा इसे
शम’अ ये थरथराती रही रात भर

ख्वाबों का पैरहन मेरी आँखों पे था
नींद भी आज़माती रही रात भर

इश्क़ के सुर में ये क्या हवा ने कहा
खामुशी गीत गाती रही रात भर

चाँद कतरा के मुझसे गया जब निकल
बेबसी मेरी मुस्कुराती रही रात भर

किसके ख्वाबों की आहट सुनाई पड़ी
याद तेरी जगाती रही रात भर

चुन के खुशबू गुलों से सजा दी ग़ज़ल
नाम इक गुनगुनाती रही रात भर

खयाले यार से दिल खुशगवार कर लेंगे

July 26, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

खयाले यार से दिल खुशगवार कर लेंगे
मिला न तू तिरे ख्वाबों से प्यार कर लेंगे

नसीब सबको नहीं हैं गुलाब की राहें
नहीं हैं फूल तो काँटो से प्यार कर लेंगे

किसी के वादे का हम ऐतबार कर लेंगे
लगे ये झूठा मगर इंतजार कर लेंगे

है अरमां दिल का रहो जिंदगी मे तुम मेरी
जहां से खुद को सनम दरकिनार कर लेंगे

लबों पे ठहरी हैं बातें न जाने अब कितनी
मिलोगे गर वही शिकवे हज़ार कर लेंगे

सदाऐं देती हैं मुझको ये बिसरी सी राहें
गली को अब तेरी हम रहगुजार कर लेंगे

मिले जो खुशनुमा सा साथ उम्र भर तेरा
सुलगते सहरा को ठंडी फुहार कर लेंगे

तड़पती रहती हैं जो हसरतें मेरी पामाल
उन्हें ही दफन करेंगे़ मज़ार कर लेंगे

अधूरे ख्वाब हैं इन आँखों में बहुत सारे
तेरा भी नाम उन्हीं में शुमार कर लेंगे

सुमन ढींगरा दुग्गल

मैं ग़ज़ल बन किसी कागज़ पर बिखर जाऊँगी

July 2, 2016 in ग़ज़ल

तेरी आँखों में रहूँगी तो सँवर जाऊँगी
गर तेरे बदले मिले दुनिया मुकर जाऊँगी

ख्याल हूँ कैद न कर तू मुझे इन पलको में
खुशबू बन तेरा मै दामन छू गुज़र जाऊँगी

छूना मत तल्ख़ हक़ीकत भरे हाथों से
ख्वाब नाज़ुक हूँ मै आँखों का बिखर जाऊँगी

रोकते काश मुझे इक दफा यह हसरत थी
रंज लेकर यही मिट्टी में उतर जाऊँगी

तेरी आँखों से गिरी सूखे से पत्ते जैसी
बह के सैलाब में इस गम के किधर जाऊँगी

मेरे ज़ज्बात तो बहते हैं किसी दरिया से
मैं ग़ज़ल बन किसी कागज़ पर बिखर जाऊँगी

निगाहें उठाकर जिधर देखते हैं

April 28, 2016 in ग़ज़ल

suman d

 

निगाहें उठाकर जिधर देखते हैं
तुम्हें बस तुम्हें हमसफर देखते हैं

उडीं हैं गुबारों सी अब हसरतें भी
खड़े हम तो बस रहगुजर देखते हैं

न कर पाई आबाद शहरों की बस्ती
तो वीरान सा अपना घर देखते हैं

अंधेरे की चादर से बाहर निकल कर
चलो बनके नूरे सहर देखते हैं

किया जो पता जीस्त का अपनी हासिल
कहाँ कुछ है बस इक सिफर देखते हैं

किसी संगदिल को भी जो मोम कर दे
वही लफ्ज़ हम ढूँढ कर देखते हैं

कभी धूप में आरज़ू की जले हम
ये दामन भी अश्कों से तर देखते हैं

~ सुमन दुग्गल

पतंग

April 17, 2016 in गीत

न बाँधों मन पतंग को,उड़ जाने दो नवीन नभ की ओर
हंस सम भरने दो,अति उमंग मे नई एक उड़ान स्वतंत्र
भावों की डोर मे बंध निर्भय,करने दो अठखेलियाँ स्वच्छंद
न खींचो धरा की ओर,बाँध पुरानी रस्मों,नियमों की डोर
उड़ जाने दो मन पतंग को सुदूर कहीं नील गगन की ओर

****

सतरंगी भूले मधुर सपनों के झिलमिल कागज से सजकर
कामनाओं की सुकोमल,मृणालिनी सी तीलियों से बंधकर
आनन्दमग्न भरने दो उड़ान नई,खुली हवा मे चहुँ ओर
डोर रिश्तों की बाँध,निष्ठुर खींचो न यूँ धरा की ओर
उड़ जाने दो मन पतंग को सुदूर कहीं नील गगन की ओर

****

नाप लेने दो व्योम इसे यह नव नीलाभ सा अपरिचित
चख लेने दो प्यासे मन बावरे को उछाह मे आजादी का अमृत
करने दो किलोल,विस्मृत कर भू को ,हो लेने दोअब हर्षित
बाँध उम्र के बंधन,न काटो निर्ममता से कोमल मन की डोर
उड़ जाने दो मन पतंग को सुदूर कहीं नील गगन की ओर

 

देखिए आज ज़माना भी नहीं अच्छा है

April 12, 2016 in ग़ज़ल

देखिए आज ज़माना भी नहीं अच्छा है
इस तरह घाव दिखाना भी नहीं अच्छा है

हम खतावार नहीं खता फिर भी मानी
दिल बिना बात दुखाना भी नहीं अच्छा है

दिल घिरा गम के समंदर में जजीरे जैसा
दर्द में और डुबाना भी नहीं अच्छा है

ख्वाब सा जिसको सजाया था कभी आँखों में
उसको नज़रों से गिराना भी नहीं अच्छा है

यूँ मयस्सर नहीं होते ये मेहरबाँ लम्हें
रूठ कर इनको गँवाना भी नहीं अच्छा है

आँखें चुप रह के भी करती हैं बहुत सी बातें
बात दिल की तो छुपाना भी नहीं अच्छा है

हमकदम होगी मसर्रत में ही देखो दुनिया
इसकी खातिर यूँ भुलाना भी नहीं अच्छा है

~ सुमन दुग्गल

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