Usha lal
क्यूँ
May 22, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
कुछ बच्चे औपचारिक शिक्षा के लिये अपने को अयोग्य पाते हैं किन्तु उनके अभिभावक इस सत्य को अस्वीकार करते हैं और अनावश्यक दबाव में बच्चे असहज रहते हैं – ऐसे माता पिता के लिये एक बच्चे की करुण पुकार …
मॉं मैं सबसे अलग थलग
क्यूँ कक्षा में पड़ जाता हूँ ?
कई बार तो कान पकड़ कर
बाहर ही रह जाता हूँ !
माना कि वे बड़े चतुर हैं
हल सवाल कर लेते हैं
लेकिन जब सब रेस लगाते
मैं ही अव्वल आता हूँ !
नहीं मेरे कुछ पल्ले पड़ता
‘अंक गणित ‘या ‘बीज गणित’
न ही कोई विज्ञान समझता
‘जीव’ ‘रसायन’ या ‘भौतिक’!!
मॉं! क्या बिन यह सब सीखे
मैं बड़ा नहीं हो पाऊँगा ?
अपने दोनों पैरों पर क्या
खड़ा नहीं हो पाऊँगा ?
तुम मुझ पर विश्वास करो मॉं
कुछ कर के दिखला दूँगा
जैसे तुमने पाला मुझको
मैं भी तुम्हें सम्हालूंगा !!
शिक्षा मुझे बोझ लगती है
‘बड़ा’। मेरा अपराध है,
किन्तु हुनर कितने ऐसे हैं,
जिनसे प्रेम अगाध है!!
‘खेल’ खेलना एक कला है ,
गाना भी है सुख देता
है कितनी ही और कलायें
जो जाने तेरा बेटा !!
‘मॉं’ मैं तेरे सुख की ख़ातिर
चाहे कुछ कर सकता हूँ !
लेकिन दब कर कठिन बोझ से
कैसे अब जी सकता हूँ ?
जिसको जो कुछ भाता है माँ
यदि वह वैसा काम करे,
हो तनाव से मुक्त , बढ़े वह आगे
जग में नाम करे !!
तुम तो मुझे समझती हो माँ
क्या समझेगा कोई और?
यह शिक्षा का बोझ हटे तो
मैं भी पा लूँ अपना ठौर !!
आँगन में जो फुदक रही थी
May 14, 2016 in Other
आँगन में जो फुदक रही थी
एक छोटी सी चिड़िया!
दौड़ी उसे पकड़ने
उसके पीछे छोटी बिटिया!!
बोली मैंने आज पढ़ा है
तू है दुर्लभ प्राणी!
तुझे संजोना है हम सब को
देकर दाना पानी !!
गौरैया ने तनिक ठहर
धीरे से पंख हिलाये
भाव करुण से उस पक्षी की
आँखो में आ छाये!
बोली बिटिया तू तो जाने
क्या तेरा दायित्व
लेकिन तू ये समझ
तेरा भी ख़तरे में अस्तित्व!
कैसे तुमसे कहूँ
तुझे है इतना नहीं पता
मेरा संकट अगर प्रदूषण
तेरा तेरे मात पिता!!
कुछ हत् भागे नहीं चाहते
हो बेटी का जन्म
बोझ समझते हैं वे तुमको
ऐसे उनके कर्म !
कभी गर्भ में कर देते हैं
वह तेरा ही अन्त
अगर जन्म तू फिर भी ले
तो कतरें तेरे पंख !!
मैं तो उड़ती खुले गगन में
फिरती हूँ स्वच्छन्द
तू फँसती है अदृश जाल में
पिंजड़े में है बन्द !!
तेरे चारों तरफ़ शिकारी
करते तुझ पर वार
नहीं असर कर पाती उन पर
कोई तीर तलवार !
हाल रहा जो यही ! प्रजाति
मेरी मिट जायेगी
लेकिन बिटिया तू भी अब
दुर्लभ ही कहलायेगी !!!
#savesparrow #savegirlchild #betibachaobetipadhao
मेरा जीवन कब मेरा है
May 11, 2016 in Other
मेरा जीवन कब मेरा है
बस आती जाती सांसें हैं
इसमें सुख दुख दूजों का है
वे दूजे मेरे अपने हैं !
जब जब कोई मेरा अपना
हँसता है मैं हंस लेती हूँ !
जब कहीं कोई मेरा अपना
रोता है मैं रो देती हूँ!!
हर चोट लगे जो अपनों को
मेरे ही तन पर पड़ती है!
जब आहत हो मन अपनों का
मेरी आत्मा तड़पती है!
मैं जिनकी ख़ातिर जीती हूँ
वे सारे मेरे हिस्से हैं,
मैं एक किताब सरीखी हूँ
वे सारे मेरे क़िस्से हैं !
ये वात्सल्य से पूर्ण ह्रदय
कब अपने लिये धड़कता है!
बस देख देख अपनी थाती
इसमें स्पन्दन बढ़ता है !!
हाँ ये अपने जो हैं मेरे
बस चन्द मात्र ही संख्या में
प्रभु कर दो मेरा मन विशाल
जुड़ जाऊँ सब से कड़ियों से!!
फिर कहाँ रहे कोई राग द्वेष
न बैर कहीं भी रहे शेष
हम संतति सब परमात्मा के
वसुधा हो मात्र कुटुम्ब एक !