हर किसी को यहां समन्दर नहीं मिलता

May 8, 2016 in ग़ज़ल

हर किसी को यहां समन्दर नहीं मिलता

ढूढते तो हैं हम भी मगर नहीं मिलता

मुद्दतों पहले जो मुझसे छुट गया था

अब मुझे वो पुराना सफर नहीं मिलता

मौत भी भला कहाँ सस्ती है यारो

बिना पैसों के तो यहां जहर नहीं मिलता

रिश्ते कितने बदल गये हैं इस दौर में

किसी का साथ उम्र भर नहीं मिलता

©विशाल विशु