मुक्तक
ये आँखे मेरी निर्झर जैसे झर जाती तो अच्छा होता जिग्यासा दर्शन की मन में मर जाती तो अच्छा होता | तुम पथिक मेरे पथ…
ये आँखे मेरी निर्झर जैसे झर जाती तो अच्छा होता जिग्यासा दर्शन की मन में मर जाती तो अच्छा होता | तुम पथिक मेरे पथ…
पुष्प की अभिलाषा -(एक मुक्तक) …………………………………………….. टूट कर शाख से शायद बिखर गया होगा कुचल कर और ओ गुल निखर गया होगा | जिसके जज्बे…
रूह उठती है काँप जमाने की तस्वीर देख कर खुशनसीब और बदनसीब की तकदीर देख कर | कोई हाजमे को परेशां है कोई रोटी की…
अनुभव कंटक-जालों का बस उसी पथिक को होता है जिसका चरण अग्निपथ चलकर कभी जला होता है | मखमल और कंचन पर सोने वालों पता…
बिस्तर से उठ चुके हैं मगर अब भी सोये है न जाने कैसे ख़्वाब में मतिहीन खोये है | गैरत ईमान का खतना बदस्तूर है…
कुछ अंध बधिर उन्मूलन किया करते है अथवा पंगु गिरि शिखर चढा करते है | कुछ सीमित आय बंधन में बांध हवा को क्षैतिज उदीप्त…
“अशिक्षा पर एक छोटा सा व्यंग मुक्तक ” हिन्दी लिखते शर्म आती है अंग्रेजी में लोला राम चुप है जब तक छुपा हुआ है खुला…
उष्णत्तर उरदाह की अनुभूति क्या तुम कर सकोगे कृत्य नीज संज्ञान कर अभिशप्तता मे तर सकोगे ! एक एक प्रकृति की विमुखता पर पांव धर…
……………..गजल……………. चल नही सकते तो टहल कर देखो तुम अपनी सोच बदल कर देखो ! दर्द के फूल किस तरह निखर जाते है आ मेरे…
नही नव्य कुछ पास में मेरे सपने सभी पुराने है आधे और अधूरे है पर अपने सभी पुराने है | कुछ विस्मृत हो गये बचे…
नही नव्य कुछ पास में मेरे सपने सभी पुराने है आधे और अधूरे है पर अपने सभी पुराने है | कुछ विस्मृत हो गये बचे…
चुप रहते है तो अंजान समझ लेते है बोल देते है तो नादान समझ लेते है | बात न माने तो कहते है मानता ही…
…………गीतिका……….. श्रृंगार उत्पति वही होती जब खिली फूल की डाली हो कुछ हास्य विनोद तभी भाता हंसता बगिया का माली हो | कलरव करते विहगों…
सूख गई धरती दाने दाने को पंछी भटक रहा झंझावात में बिन पानी सांसे लेने में अटक रहा | तिस पर भी प्रतिदिन मानव संवेदन…
” मुक्तक ” आँखों से आंशुओं को यूँ जाया नहीं करते। हर बात पर बच्चो को रुलाया नहीं करते।। खुशिंया नहीं दे सकते ना सही…
ये आँखे मेरी निर्झर जैसे झर जाती तो अच्छा होता जिग्यासा दर्शन की मन में मर जाती तो अच्छा होता | तुम पथिक मेरे पथ…
“मुक्तक” मुझे क्या हो गया है घर में घर अच्छा नही लगता कोई बेचारगी में दर बदर अच्छा नही लगता ! मुझे सब सोहरते हासिल…
सरिता पावन हो गई स्निग्ध खुश्बू सी वन में छाई है तु कौन रमणिका जल क्रिडा को चली कहां से आई है! सारा उपवन नतमस्तक…
“मुक्तक” हमने पूछा उनसे क्या दूकानदारी चल रही अब नकद है या पहले सी उधारी चल रही ! क्या नमक देश का कुछ रंग भी…
“मुक्तक” खुद कभी माना नही जिसको सीखाते है थे कभी बहरे जो दुनियां को सुनाते है ! जिन्दगी जिसकी हुई जाया ही गफलतों में ओ…
” मुक्तक ” आँखों से आंशुओं को यूँ जाया नहीं करते। हर बात पर बच्चो को रुलाया नहीं करते।। खुशिंया नहीं दे सकते ना सही…
आज का विषय-मनहरण घनाक्षरी/कवित्त दिनांक-२०/६/१६ विधा- गीत (गौना/भला) वार्णिक छंद मात्राएँ-८ ८ ८ ७ – १६-१५ धरती पर वृक्ष नित्य अल्प होते जा रहे पर्यावरण…
मुक्तक छंद – वार्णिक (मनहरण घनाक्षरी) सामांत-आई पदांत- है ८८८७-१६-१५ पहले जो पढने में गदहे कहलाते थे उनकी भी दिखती आज नही परछाई है !…
“मुक्तक छंद पर चार पंक्तियाँ “(घनाक्षरी) ११. ११२. २. २ २. २१. २. २२ १२. ११ २ पुण्य करना है तो माँ बाप की सेवा…
निगाहें मिलाकर भी नज़र तुम चुराते हो! अदाओं से मेरा जिग़र तुम जलाते हो! जिन्द़गी धधक रही है चाहत में तेरी, इसकदर ख्यालों में आग़…
तेरे सिवा कुछ मुझे नज़र आता नहीं है! मेरा सफर यादों का गुजर पाता नहीं है! राहें खींच लेती हैं इरादों की इसतरह, ख्वाबे-जुत्सजू तेरा…
तुझे सोचना ही मुझे जूनून देता है! तेरे सिवा कुछ भी नहीं सकून देता है! रूकी हुयी है तेरे लिए तकदीर मेरी, तेरा ख्वाब लफ्जों…
अज़ब बेकरारी हो जाती है हर शाम को! हऱ घड़ी जुबाँ पर लेता हूँ तेरे नाम को! दर्द की जंजीर से जकड़ जाती है जिन्द़गी, खोजता हूँ हरलम्हा मयक़शी के जाम को! Composed By #महादेव
वक्त के साथ-साथ बदल रहे हो तुम! वफा की राह़ में फिसल रहे हो तुम! हो गयी है दूरी दिलों के दरमियाँ, दर्द की तस्वीरों…
मेरे हरेक पल का इंतजार हो तुम! मेरी ज़िन्दगी का ऐतबार हो तुम! मेरी मंजिलें हैं अब तेरी आरजू, मेरी धड़कनों में बेशुमाऱ हो तुम!…
खामोश हूँ मगर हर बात समझ लेता हूँ! तेरी नजरों की जज्बात समझ लेता हूँ! हरवक्त देख लेता हूँ ख्यालों में तुमको, तेरी साँसों की…
होते ही शाम मेरी तबीयत मचल जाती है! तेरी शमा चाहत की ख्याल में जल जाती है! मेरे लफ्ज़ कांपते हैं तेरा नाम लेकर, तेरी…
मेरी जिन्दगी में कभी ऐसा भी मुकाम हो! मेरा नाम तेरे लब पर सुबह और शाम हो! रोशनी करीब रहे बस तेरे दीदार की, सामने…
मैं अपने साथ तेरी बात ले आया हूँ! जिन्द़गी भर की मुलाकात ले आया हूँ! मुझे अब खबर नहीं है शाम और सहर की, दिल…
आज की रात तन्हा नम सी है! जिस्म में जिन्द़गी कुछ कम सी है! ख्वाब बेशुमार हैं फिर जागे हुए, पलक में चाहत भी शबनम सी है! Composed By #महादेव
तुम नहीं हो पास तो कुछ भी नहीं है! मैं हूँ कहीं मेरी #जिन्दगी कहीं है! खोजता हूँ अपने वजूद को मगऱ, तुम हो जहाँ…
तुम्हें याद करते-करते खामोश सा हो जाता हूँ! अपने ही जुदा ख्यालों से मदहोश सा हो जाता हूँ! जब भी करीब आता है तेरे ख्वाबों…
क्यों एक दूसरे से दूर हो गये हम? वक्त के सितम से मजबूर हो गये हम! टूटी है इसतरह से जिन्दगी मेरी, दर्द की महफिल…
हर शक्स अपने आप में बिमार जैसा है! दिल में है दर्द आँखों में खुमार जैसा है! जल रहा है दामन हरतरफ उम्मीदों का, जिन्द़गी…
तेरे लिए खुद़ को हम खोते चले गये! जिन्दगी को अश्क से भिगोते चले गये! धड़कनों में घुल गयी हैं यादें इसतरह, मयकशी में दर्द़…
हुयी है अभी शाम मगर रात हो जाने दो! तपते हुए इरादों को दर्द में खो जाने दो! जब जागते हैं ख्वाब भी तड़पाते हुए…
चाहतों की ख्वाहिश फिर से बहक रही है! तेरी बेरुखी से मगर उम्र थक रही है! मेरा सब्र बिखर रहा है बेकरारी से, तेरे लिए…
जब तेरे ख्याल से मुलाकात हो जाती है! तूझे याद करते करते रात हो जाती है! रूकता नहीं है सिलसिला इरादों का मेरे, जब ख्वाबों…
जख्म जिन्दा है तेरा याद भी आ जाती है! खामोश लम्हों में चाहत तेरी रुलाती है! मैं जी रहा हूँ तन्हा गम-ए-हालात से मगर, चुभन…
किसी के वास्ते हम भी कमाल कर लेते हैं! अपने हर सकून का बुरा हाल कर लेते हैं! खोखले रिवाजों में हम जीते हैं जिन्दगी,…
गम-ए-तकदीर के भी कैसे नजारे हैं! खौफ़ की राह पर ख्वाब सब हमारे हैं! मंजिलों को खोजती है ज़िन्दगी कोई, किसी की ख्वाहिशें ही टूटते…
मैं जी रहा हूँ तेरी कहानी बनकर! दीवानगी की तेरी रवानी बनकर! नाखुदा सी बन गयी हैं चाहतें मेरी, जख्में-जिगर में तेरी निशानी बनकर! Composed By #महादेव
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