नारी…..
ईश्वर की अनूठी रचना हूँ मै हाँ ! नारी हूँ मैं ……… कभी जन्मी कभी अजन्मी हूँ मैं , कभी ख़ुशी कभी मातम हूँ मैं…
ईश्वर की अनूठी रचना हूँ मै हाँ ! नारी हूँ मैं ……… कभी जन्मी कभी अजन्मी हूँ मैं , कभी ख़ुशी कभी मातम हूँ मैं…
शर्म आ रही है ना उस समाज को जिसने उसके जन्म पर खुल के जश्न नहीं मनाया शर्म आ रही है ना उस पिता को…
उसके सिर्फ दो बेटियाँ थी दोनों सरकारी स्कूल मैं पढती थी अबकी उन्हें सिर्फ बेटा ही चाहिए था लेकिन फिर से बेटी हो गई अभी…
मांगे जब भी तब उस बेटी की हर हरमाइश् पूरी हो, ऐ खुदा काबिल बना दे, हर बाप को इतना के उसकी कभी जेब ना…
सम्पूर्ण ब्रहमण्ड भीतर विराजत ! अनेक खंड , चंद्रमा तरेगन !! सूर्य व अनेक उपागम् , ! किंतु मुख्य नॅव खण्डो !! मे पृथ्वी…
इस कलि को मुस्कुराने दो कोख से धरती की गोद में आने दो बिखेर देगी चारोंतरफ खुशियाँ खुल के तो इसे मुस्कुराने दो। बेटी को…
*एक विदाई गीत* हरे हरे कांच की चूड़ी पहन के, दुल्हन पी के संग चली है । पलकों में भर कर के आंसू, बेटी पिता…
दुनिया का भी दस्तूर है जुदा, तू ही बता ये क्या है खुदा? लक्ष्मी-सरस्वती, हैं चाह सभी की, क्यों दुआ कहीं ना इक बेटी की…
बेटी का हर रुप सुहाना, प्यार भरे हृदय का, ना कोई ठिकाना, ना कोई ठिकाना।। ममता का आँचल ओढे, हर रुप में पाया, नया तराना,…
Shakun Saxena उछाल उछाल कर पापा मुझे दिल्ली दिखाते थे, हंस हंस कर पापा को मैं खूब रिझाती थी, भरोसे का अटूट रिश्ता था हमारा,…
बेटा अपना अफसर है.. दफ्तर में बैठा करता है.. जी बंगला गाड़ी सबकुछ है.. पैसे भी ऐठा करता है.. पर क्या है दरअसल ऐसा है..…
मुक्तक छंद – वार्णिक (मनहरण घनाक्षरी) सामांत-आई पदांत- है ८८८७-१६-१५ पहले जो पढने में गदहे कहलाते थे उनकी भी दिखती आज नही परछाई है !…
मिट्टी से गढ़ी है, नन्ही सी परी है, ना माँ की दुलारी, ना बाबा की प्यारी, ये सङकें ही घर है इसका , यहीं सारा जग…
आज भी मै बेटी हूँ तुम्हारी, बन पाई पर ना तुम्हारी दुलारी, हरदम तुम लोगों ने जाना पराई, कर दी जल्दी मेरी विदाई। जैसे थी…
हाँ हूँ मै पराई लो कह दिया मैंने खुद को ही पराई…. सबने जी दुखाया, कहके मुझे पराया, …
खाकी – खद्दर पहने हुये , इंसान बिकने लगे कोडियों में यहाँ लोगो के,ईमान बिकने लगे ।। कही मुर्दे तो,कही आज शमशान बिकने लगे, चदरों…
आँगन में जो फुदक रही थी एक छोटी सी चिड़िया! दौड़ी उसे पकड़ने उसके पीछे छोटी बिटिया!! बोली मैंने आज पढ़ा है तू है दुर्लभ…
तुम्हारे हाथ का हर एक छाला, चुभा जाता है इस दिल में एक भाला, हर एक रेखा जो तुम्हारी पेशानी पर है, एक दास्तां बयां…
अत्याचार दिन ब दिन बढ़ रहे हैं भारत की बेटी पर। रो-रो कर चढ़ रही बिचारी एक-एक करके वेदी पर ।। भिलाई से लेकर दिल्ली…
ब्रह्मा-ऋषि-मुनि-चरक का तो ये देश हो सकता नहीं ,, क्यूँ बताते हो डॉक्टर पेट में बेटी है बेटा नहीं ..!!
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