अजूबी बचपन
आज दिल फिर बच्चा होना चाहता है
बचपन की अजूबी कहानियों में खोना चाहता है
जीनी जो अलादिन की हर ख्वाहिश
मिनटों में पूरी कर देता था,
उसे फिर क्या हुक्म मेरे आका
कहते देखना चाहता है
आज दिल फिर बच्चा होना चाहता है
मोगली जो जंगल में बघीरा और बल्लू
के साथ हँसता खेलता था
उसे फिर शेरखान को पछाड़ते
देखना चाहता है
आज दिल फिर बच्चा होना चाहता है
हातिम जो पत्थर को इंसान बनाने
कालीन पर बैठ उड़ जाता था
उसे फिर कोई पहली सुलझाते
देखना चाहता है
आज दिल फिर बच्चा होना चाहता है
वो रंगोली वो चित्रहार वो पिक्चर फिल्म
का शेष भाग
फिर उसी दौर में जा के समेटना
चाहता है
आज दिल फिर बच्चा होना चाहता है
साबू जो जुपिटर से आया था, चाचा
चौधरी के घर में जो न समां पाया था
ऐसे ही और किरदारों
को फिर ढूंढना चाहता है
आज दिल फिर बच्चा होना चाहता है
तब मासूम थे अजूबी सी बातों पर भी
झट से यकीन कर लेते थे
आज समझदार हो कर भी दिल किसी
अजूबे की राह तकना चाहता है
आज दिल फिर बच्चा होना चाहता है….
अर्चना की रचना “सिर्फ लफ्ज़ नहीं एहसास”
Nice poetry
Nice line
Good one!
वाह
Nyc
Very nice