अपनो के दिए ज़ख्म
हर दर्द का इलाज है जहान में
पर अपनो के दिए ज़ख्म कहाँ भरते हैं
टूट जाते हैं जो रिश्ते तो फिर कहाँ
जुड़ते हैं
कैसी कश्मकश है जिंदगी में
जो प्रिय होते
वही बिछड़ते हैं
कितनी भी कोशिश करो
खुश रहने की
जब आंख में आँसू हो तो
लब कहाँ हँसते हैं
खुद को बदलने की हर कोशिश
करती हूँ पर दिल के
अंगार कहाँ बुझते हैं
हमेशा मै ही झुकूं
ये तो मुनासिब नहीं
स्वाभिमान के अल्फ़ाज
कहाँ चुप रहते हैं
हर दर्द का इलाज है मगर
अपनों के दिए ज़ख्म नहीं
भरते हैं ।
Nice
थैंक्स
Good
थैंक्स
Nyc
धन्यवाद
Nice poem
थैंक्स
वाह
धन्यवाद
Super
थैंक्स
Very nice lines